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शक्तिपुँज श्री गुरु गोबिंद सिंह जी by Dr.Purnima Rai

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शक्तिपुँज श्री गुरु गोबिंद सिंह जी (डॉ.पूर्णिमा राय )  22 दिसंबर, सन् 1666 को पटना साहिब में नवम् पातशाही गुरु तेग़बहादुर जी की धर्मपत्नी माता गुजरी के घर जन्मे सुंदर बालक गुरु गोबिन्द सिंह जी खिलौनों से खेलने की उम्र में कृपाण, कटार और धनुष-बाण से खेलना पसंद करते थे। बहुभाषाविद गुरु गोबिंद सिंह जी को फ़ारसी अरबी, संस्कृत और अपनी मातृभाषा पंजाबी का ज्ञान था। उन्होंने सिक्ख क़ानून को सूत्रबद्ध किया, काव्य रचना की और सिक्ख ग्रंथ 'दशम ग्रंथ' लिखकर प्रसिद्धि पाई। दशम गुरु गोबिन्द सिंह जी उस युग की आतंकवादी शक्तियों का नाश करने तथा धर्म एवं न्याय की प्रतिष्ठा के लिए गुरु तेग़बहादुर सिंह जी के यहाँ अवतरित हुए। इसी उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था--- "मुझे परमेश्वर ने दुष्टों का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए भेजा है।" गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता और दूरदृष्टि का सम्मिश्रण माना जाता है।गुरु गोबिन्द सिंह ने सिक्खों में युद्ध का उत्साह बढ़ाने के लिए वीर काव्य और संगीत का सृजन किया था। खालसा को पुर्नसंगठित सिक्ख सेना का मार्गदर्शक बनाकर, उन्होंन...

अभ्यास एवं प्रयास by Dr.Purnima Rai

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  अभ्यास एवं प्रयास  हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के संत एवं समाजसुधारक कवि कबीरदास जी ने अपने दोहों में  लिखा है... करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान।। निरंतर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है ।जैसे कुएँ से पानी निकालने वाली रस्सी की रगड़ से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं ।अंग्रेजी में भी कहते हैं.."Practice makes a man Perfect".बार बार किसी कार्य को करने से कार्य करने की कुशलता पर प्रभाव पड़ता है। अगर कक्षा में कोई छात्र मंद बुद्धि यां वह कक्षा में ध्यान से नहीं पढ़ता तब शिक्षक को काफी कठिनाई आती है।ऐसी स्थिति में इन छात्रों से मित्रतापूर्ण व्यवहार रखकर ,उनकी पढ़ाई हेतु हर संभव सहायता करके हम ऐच्छिक परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। लिखना सिखाना ,लिखावट सुधारना  सबसे जोखिमपूर्ण कार्य है परंतु असंभव कुछ नहीं होता अगर हम यह बात याद रखें तो अपनी मंजिल पा सकते हैं।आज से पाँच साल पहले मेरी छठी कक्षा में एक लड़की पढ़ने हेतु आई।वह समझती सब थी ।हरेक बात को ध्यान से सुनती और हँसती रहती। शिक्षिका होने के नाते सब की कापियाँ जाँचना मेरा कर्तव्य ...