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Showing posts from June, 2021

चोका

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  चोका  1)धन्य अभिभावक  रूहें मिलती दीदार-ए-इश्क से रूबरू होता जब हुस्न हसीन झंकृत मन विस्तृत संवेदना  इहलोक से शून्य की परिधि में समाहित हो खिल उठते फूल मौन की भाषा करती है संवाद नैनों के आँसू कहें विरह गाथा  तन का रोग नहीं कष्टदायक हृदय पीर क्यों है असहनीय नवल रिश्ते छूट जाते पुराने बुजुर्गों से क्यों कन्नी हैं कतराते लब दुआएं हर हाल में देते औलाद सुख सर्वोपरि रखते साथ निभाते फर्ज कर्तव्य संग धन्य अभिभावक !! ****************************************** 2) चुनावी नेता चुनावी नेता अदब का भाषण लोग पूजते  हुआ फूल माला से सदा स्वागत भेड़ चाल सी यह चाल घिनौनी भोली जनता देख रही तमाशा  मद में चूर लड़खड़ाते नेता ढींगे हाँकते बने हवाई किले पल में ढेर आड़े हाथों से लिया सफेदपोश मुखौटाधारी नेता जागृत जन समझ गये अब कुर्सी का खेल गिल्ली डण्डे मानिंद नहीं घूमना गिल्ली बनकर वोट का डण्डा नचायेगा नेता को समझा जन-जन!! ******************************************  3)विश्वास सुनो मोहन मैं हो गई तुम्हारी बँसी की धुन कर देती है मुग्ध आस की डोर बाँधी है विश्वास से तन अर्पित मन...

लघुकथा लिखने का ढंग---एक दृष्टिकोण मेरा भी

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लघुकथा लिखने का ढंग---एक दृष्टिकोण मेरा भी लघुकथा लिखने का ढंग---एक दृष्टिकोण मेरा भी लघुकथा संबंधी विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने  आलेखों में लघुकथा के कथ्य,शिल्प,संवेदना.,दशा एवं दिशा संबंधी अपने अमूल्य विचार पेश किये हैं।इसी क्रम में आज मैं अपना मत प्रस्तुत कर रही हूँ------ लघुकथा में कथ्य ,भाव एवं संवेदना,संवाद,गहनता एवं चिंतन ...इनका आवश्यक ध्यान रखा जाये।कम शब्दों में गूढ़ार्थ दिखाना लघुकथाकार का लक्ष्य होता है।वह विस्तृत फलक पर अपने कम शब्दों से रंग भर कर पाठक के हृदय को आलोड़ित करने के साथ-साथ समाज के प्रत्येक पक्ष --आर्थिक ,सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक,व्या वसायिक,शैक्षणिक .....के प्रति जागरुकता एवं चेतनता पैदा करता है।लघुकथा में समस्या उठाना यां दिखाना श्रेयस्कर नहीं होता वरन् समाधान पर  अप्रत्यक्ष रुप से पहुँचाना लघुकथाकार की कारीगरी होती है। वह सामान्य घटना यां-आस पास होने वाले यथार्थ को जो स्वयं लेखक ने भोगा यां उसके निकट परिचित ने अनुभव किया हो,उसे विशिष्ट रुप में इस तरह पाठक के समक्ष रखता है कि पाठक को लेखक की लघुकथा के विचार,भावनाएं अपनी सी लगने लगती हैं।घटना को दिखा...

संत कबीरदास जी की वाणी का संदेश(कुछ अंश)

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 संत कबीरदास जी की वाणी का संदेश(कुछ अंश ) 1* गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाय । बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय।। गुरु और ईश्वर में गुरु ही सर्वोच्च है ।उसकी महिमा अपंरमार है।उस गुरु को परमात्मा से अधिक महत्व दिया है। 2* माला तो कर में फिरै ,जीभ फिरै मुख माहिं मनवा तो चहुँ दिशि फिरै,यह तो सिमरन नाहिं।। कबीर जी ने झूठे रीति रिवाजों एवं खोखले आडंबरों का विरोध करके सच्चे मन से नाम सुमिरन पर बल दिया है। 3* साईं इतना दीजिये,जा में कुटुम्ब समाय मैं भी भूखा न रहूँ,साधु न भूखा जाये।। जीवन यात्रा में अधिक संग्रह के विरो़धी कबीर जी सदैव इतना ही ईश से माँगे रहे,जितना उनके परिवार के लिये एवं घर आये मेहमानों,साधुओं की भूख मिटाने हेतु उचित था। 4* कबीरा गर्व न कीजिये,अस जोबन की आस टेसू फूला दिवस दस,खंखर भया पलास।। जवानी के आलम पर बेसुध लोगों को समझाते कहते हैं ,यह जवानी ताउम्र नहीं रहनी,कुछ दिन की है,बाद में बुढ़ापे ने आ घेरना है।जैसे टेसू यानि पलाश का फूल दस दिन फलता-फूलता है, ऐसे ही जवानी है।पलाश का फूल बाद में सूखकर खंखर यानि डंठल मात्र रह जाता है। 5*चिन्ता न कर अचिन्त रहु,देनहार समरत...