चोका
चोका
1)धन्य अभिभावक
रूहें मिलती
दीदार-ए-इश्क से
रूबरू होता
जब हुस्न हसीन
झंकृत मन
विस्तृत संवेदना
इहलोक से
शून्य की परिधि में
समाहित हो
खिल उठते फूल
मौन की भाषा
करती है संवाद
नैनों के आँसू
कहें विरह गाथा
तन का रोग
नहीं कष्टदायक
हृदय पीर
क्यों है असहनीय
नवल रिश्ते
छूट जाते पुराने
बुजुर्गों से क्यों
कन्नी हैं कतराते
लब दुआएं
हर हाल में देते
औलाद सुख
सर्वोपरि रखते
साथ निभाते
फर्ज कर्तव्य संग
धन्य अभिभावक !!
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2) चुनावी नेता
चुनावी नेता
अदब का भाषण
लोग पूजते
हुआ फूल माला से
सदा स्वागत
भेड़ चाल सी
यह चाल घिनौनी
भोली जनता
देख रही तमाशा
मद में चूर
लड़खड़ाते नेता
ढींगे हाँकते
बने हवाई किले
पल में ढेर
आड़े हाथों से लिया
सफेदपोश
मुखौटाधारी नेता
जागृत जन
समझ गये अब
कुर्सी का खेल
गिल्ली डण्डे मानिंद
नहीं घूमना
गिल्ली बनकर
वोट का डण्डा
नचायेगा नेता को
समझा जन-जन!!
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3)विश्वास
सुनो मोहन
मैं हो गई तुम्हारी
बँसी की धुन
कर देती है मुग्ध
आस की डोर
बाँधी है विश्वास से
तन अर्पित
मन का समर्पण
चाहूँगी सदा
झंझट मोहमाया
स्वार्थ गठरी
बाँधकर चलना
मधुर रिश्ते
बीच भँवर रहे
पाँव में बेड़ी
किनारे की चाह में
भवसागर
कैसे हो अब पार
धन चाहत
छोड़ रे मन मेरे
संतुष्ट वही
जो सीख गया जीना
वर्तमान में
संभाल लेना रिश्ते
आस्था औ' विश्वास से!
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4) मात यशोदा
मात यशोदा
चलते हुये देखती
माखन चोर
गोप ग्वालों का सखा
नंद गोपाल
करे अठखेलियाँ
कभी गिरता
संभाल लेती है माँ
सीने में दिल
प्रेमासिक्त ममता
वक्त की मार
कृष्ण हो गया शुक्ल
माँ का हृदय
हुआ अब छलनी
कराहों से भी
परत-दर-परत
छलके प्रेम
पुत्र वियोग में भी
धैर्य की चक्की
निरंतर चलाती
टूटती साँसें
सरसर पत्तों की
सूखती डाली
ठूँठ है तरुवर
खोखले रिश्ते
पिरो रही माला में
बिना गाँठ के
निर्मल जल जैसी
सहनशक्ति
और वत्सलता से
जीत जाती संसार!!
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5* भीग गई वसुधा
हवा के झोंके
छू रहे तन - मन
निश्छल यादें
बरबस उतरी
मन के द्वार
अंखियों का पैमाना
ज्यों ही छलका
बादलों से टपकी
बूँद - बूँद से
भीग गई वसुधा
विरहाग्नि में
मूसलाधार वर्षा
हृदय नभ
हो गया आह्लादित
प्रिय मिलन
अनोखा प्रकृति का
भीनी सुगंध
आने लगी धरा से
पुलकित अंगागी...।
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6* मन का साथी (चोका)
समेट लिया
सूनापन भीतर
विस्तृत मन
नीलांबर को घेरे
उड़ते पाखी
हो गये हैं विलीन
मनु आहत
कैसी दिखती सृष्टि
प्रेम विहीन
श्रद्धा एवम इड़ा
व्याकुल बड़ी
ढूँढने है निकली
मन का साथी
दूर करे खालीपन
तृप्त हो रूह
चलके भक्ति मार्ग
निस्वार्थ सेवा
कर्मरत मनुज
बांटे खुशियाँ
खोज लेता आशाएं
अन्धकूप में
बटोही की पुकार
बंजर भूमि
बुनियाद से हिली
धंसती जाती
अपनों से आहत
है सदा सीता मैया!!
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7* बुलंद सोच
घुप्प अंधेरा
सूर्य के आलोक में
नवल आशा!!
एक ओजस्वी
प्रतीक पौरुष का
पथ अडिग!!
भुजबल से
जीतने चला विश्व
महामानव!!
रवि रश्मियाँ
न बाँध पाये जग
साक्षात शक्ति!!
बुलंद सोच
दृढ़ निश्चय से हो
होगी जीत सूर्य सी!!
...डॉ.पूर्णिमा राय, लेखिका
आलोचना पुरस्कार विजेता,
भाषा विभाग पटियाला
drpurnima01.dpr@gmail.com
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