लघुकथा लिखने का ढंग---एक दृष्टिकोण मेरा भी
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लघुकथा लिखने का ढंग---एक दृष्टिकोण मेरा भी
लघुकथा लिखने का ढंग---एक दृष्टिकोण मेरा भी
लघुकथा संबंधी विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने आलेखों में लघुकथा के कथ्य,शिल्प,संवेदना.,दशा एवं दिशा संबंधी अपने अमूल्य विचार पेश किये हैं।इसी क्रम में आज मैं अपना मत प्रस्तुत कर रही हूँ------
लघुकथा में कथ्य ,भाव एवं संवेदना,संवाद,गहनता एवं चिंतन ...इनका आवश्यक ध्यान रखा जाये।कम शब्दों में गूढ़ार्थ दिखाना लघुकथाकार का लक्ष्य होता है।वह विस्तृत फलक पर अपने कम शब्दों से रंग भर कर पाठक के हृदय को आलोड़ित करने के साथ-साथ समाज के प्रत्येक पक्ष --आर्थिक ,सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक,व्या वसायिक,शैक्षणिक .....के प्रति जागरुकता एवं चेतनता पैदा करता है।लघुकथा में समस्या उठाना यां दिखाना श्रेयस्कर नहीं होता वरन् समाधान पर अप्रत्यक्ष रुप से पहुँचाना लघुकथाकार की कारीगरी होती है। वह सामान्य घटना यां-आस पास होने वाले यथार्थ को जो स्वयं लेखक ने भोगा यां उसके निकट परिचित ने अनुभव किया हो,उसे विशिष्ट रुप में इस तरह पाठक के समक्ष रखता है कि पाठक को लेखक की लघुकथा के विचार,भावनाएं अपनी सी लगने लगती हैं।घटना को दिखाना ही लघुकथाकार का उद्देश्य नहीं वरन् कथ्य, भाव, संवेदना,चिंतन के क्षेत्र को झकझोरना भी लक्ष्य होना चाहिये।इसमें कहानी की तरह विस्तार एवं वर्णन की गुंजाईश नहीं होती।बल्कि प्रभावशाली ढंग से अपने विचारों को रखना महत्वपूर्ण होता है।लघुकथा को महज आकार में छोटा समझना और लिखने लगना सबसे बड़ी भूल है।जब भी लघुकथा लिखें ,अवश्य ध्यान रहे कि हम सामान्य को किस तरह परोस रहे हैं। साधारण मनुष्य और लेखक में यही भिन्नता है कि साधारण व्यक्ति वही पढ़ पाता जो लेखक के शब्दों ने कहा. और बुद्धिजीवी यां अध्ययनरत व्यक्ति वह भी पढ़ता जो लेखक ने अप्रत्यक्ष रुप से दिखाया। लेखक के लेखन की कुशलता यही है कि वह जो भी लिखे हरेक पाठकीय स्तर ---सामान्य,विशेष,अध्ययनरत,बुद् धिजीवी,
सुसाहित्यकार तक अपने लेखनीय शब्दों से उनके हृदयपटल पर अपनी छवि छोड़ जाये।
1)लघुकथा आकार में छोटी हो।कम से कम चार पंक्तिमें भी लघुकथा लिखी जा सकती है अधिक से अधिक लगभग 400शब्दों तक।सामयिकता में अधिकतर लघुकथाएं 300शब्दों की सीमा में लिखी जा रही हैं।अभी बीते दिनों लघुकथा.कॉम पर नीता सैनी की लघुकथा "फेसबुक" पढ़ी जो महज तीन चार पंक्तिमें ही लिखी गई थी। वह एक प्रभावशाली लघुकथा थी।
2) लघुकथा में संवाद का अधिक तो नहीं पर महत्वपूर्ण भूमिका होती है।संवाद सरस हों,प्रभावपूर्ण होने चाहिये।संवाद कथ्य को आगे बढ़ाने एवं लक्ष्य तक पहुंचाने में सक्षम हो..इतने न हों कि महज वार्तालाप लगे..और लक्ष्य छूट जाये।
3)लघुकथा में कथानक गूढार्थ देने में सक्षम हो।सामान्य कथन ,घटना,अनुभव, संवेदना के धरातल पर चिंतन मंथन के क्षेत्र को झकझोरें एवं पाठकीय सोच का दायरा विस्तृत करने वाला हो।
4)भावशून्यता एक खोखले समाज का आधार है ।भावप्रवण समाज,साहित्य,सभ्यता,संस्कृति की धरोहर है।जब तक हृदय भावना विहीन रहेगा तब तक लेखक पाठक के साथ तादात्म्य कैसे स्थापित करेगा।यथार्थ की जमीन पर खोखले आदर्शों का ब्यान महज दिखावा है।यथार्थ की जमीन से जुड़े आदर्श ही सकारात्मक समाज के निमार्ण में सक्षम हैं। लघुकथा में यथार्थ और आदर्श की अहम् भूमिका है।कल्पना का स्थान अवश्य होता है मगर कुछ नया सकारात्मक परिवर्तन दिखाने हेतु।यूँ ही कल्पना को कथा में उडेलना हासोहीनी स्थिति उत्पन्न कर देता है।
5)हरेक व्यक्ति को संतुष्ट नहीं किया जा सकता।लघुकथा में लेखक का लक्ष्य महज आत्मतुष्टि न होकर सर्वजनहिताय होता है।नयी सोच,नव संकल्प,दिखाकर समाज ,सभ्यता,संस्कृति की अमूल्य धरोहर को बचाने हेतु लेखक जागरुक रहता है।
6)अच्छी लघुकथा लिखने से पहले अच्छे लघुकथाकारों को पढ़ा भी जाना अनिवार्य है।लेखन में आपकी पकड़ तभी मजबूत होगी जब हम पढ़ने एवं अध्ययन करने की ओर ध्यान भी केन्द्रित करें।
7)जो लघुकथा किसी अखबार यां वेबसाइट पर प्रकाशित हो गई ।यां जिसपर बहुत लोग लाइक,कमेंट,वाह वाह करते हैं आवश्यक नहीं कि वह उत्तम है और जो न छपी,जिसपर लाईक न आये ,
वह कूड़ा। छपना ही किसी रचना के उत्तम होने की कसौटी नहीं है।यह भी लेखक को अपने दिमाग में रखना चाहिये।
8)लघुकथा.कॉम को साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी,सुकेश साहनी जी विगत कई वर्षों से चला रहे हैं।अमृतसर से "बरोह" पत्रिका में डॉ.शुभदर्शन जी हिन्दी प्रचार प्रसार समिति के तहत अच्छी लघुकथाओं को प्रकाशित करवा रहे हैं।सेतु.कॉम
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर साल लघुकथा प्रतियोगिता करवाता है।"अचिन्त साहित्य" में भी लघुकथाएं प्रकाशित की जाती हैं। साहित्यसागर फेसबुक राष्ट्रीय मंच के तहत ऋषि अग्रवाल के संपादन में भी लघुकथा संग्रह प्रकाशित किये जाते हैं।
सम्मान्य एवं लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों में डॉ.श्यामसुंदर दीप्ति ,श्यामसुंदर अग्रवाल (मिनी पंजाबी कहानी पत्रिका विगत कई वर्षों.से निरंतर निकाल रहें हैं ।आप ने लघुकथा क्षेत्र में सराहनीय एवं प्रभापूर्ण कार्य किया है।डॉ.गिरिराजशरण अग्रवाल एवं रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी के संपादन में "शोध दिशा" का" लघुकथा विशेषांक2016" इस दिशा में नवल एवं प्रौढ़ कदम रहा।
रामेश्वर हिमांशु ,सुकेश साहनी, सुभाष नीरव ,अनिल शूर ,विभा रश्मि,गिरीश पंकज ,डॉ.शील कौशिक,सुदर्शन रत्नाकर, जी के सानिध्य में एवं सहयोग में लघुकथा संबंधी बहुत कुछ सीखने ,समझने का सौभाग्य मिला। डॉ.सुषमा गुप्ता,डॉ.किरण ,वीरेन्द्र भाटिया नीता सैनी, डॉ. ज्योत्सना शर्मा,सत्या शर्मा कीर्ती,आभा सिंह, डॉ. शशि जोशी ,डॉ. शील कौशिक,देवराज डडवाल ,डॉ.चन्द्रा सायता, डॉ.पूर्णिमा राय,डॉ.भावना तिवारी,जियाउल हक,रुबी प्रसाद,इत्यादि और भी बहुत से लेखक उभर कर सामने आ रहे हैं।आये दिन हम आप सबकी लघुकथाएं वेबसाइट ,वेबपोर्टल ,समाचार पत्र,पुस्तकों के रुप में पढ़ते आ रहे हैं।"पब्लिक इमोशन बिजनौर" समाचार पत्र में मेरी लिखी कुछ लघुकथाएं छपी हैं। साहित्यिक स्तर पर जुड़े हुये बुद्धिजीवी वर्ग से जुड़ें।अगर महज रचनाओं की गिनती बढ़ानी है तो किसी की बात न सुनकर लिखते रहें और अगर गुणात्मक सुधार चाहिये तो दूसरों की बात एवं प्रतिक्रिया को समझें।
डॉ.पूर्णिमा राय,शिक्षिका एवं लेखिका
(पंजाब)
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