गीतिका छंद


गीतिका छंद



२१२२ २१२२  , २१२२ २१२

हर बशर सुख चाहता है , सुख मगर मिलता नहीं।
दूर कर लें खामियों को,  दुख कभी टिकता नहीं।।

जब वफा करने लगेंगे ,  प्रीत महकेगी तभी 
मान दें हम दूसरों को ,जीत चहकेगी तभी।।


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