तोटक छंद ज्ञान


तोटक छंद



{112×4चार सगण ,लघु लघु गुरु,चार चरण}
       (1)
चल भाग मुसाफिर वक्त चला ,
जग से किसको कब प्रेम मिला ।।

श्रम के मद में जन चूर हुये,
दुख रोग मुसीबत दूर हुये।।

सुख आमद आँगन में बिखरे,
सजनी रजनी बनके सँवरे।।

हर चाहत में खुशियाँ सजती,
जग मानवता जब भी फलती।।
          (2)
उजियार करे नित सूरज ये;
अँधकार मिटे जग सूरज से।

मुख घूँघट ओढ़ लिया रजनी;
नभ चाँद सुहावन हे सजनी।

तपती वसुधा जल को तरसे;
बन बादल मेह धरा बरसे।।

वन की लतिका फल-फूल लदी;
तितली करती सब दूर बदी।।

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