दिल से हो जाती है दिल्लगी


दिल से हो जाती है दिल्लगी 



 दिल से हो जाती है दिल्लगी

 दिमाग लगाकर ना होगी बंदगी ।।


दिल कहता है

 बस तू रहे हमेशा

 पास मेरे

दिमाग की मानूं 

तो नहीं डूब पाती हूं 

ख्यालों में तेरे।।


दिल कहता है ,दूर हवाओं में उड़ जा,

कहीं दूर सपनों में खो जा।

लेकिन

दिमाग रखता है मुझे हमेशा 

मेरी जमीन से जोड़कर,

कर्तव्य अधिकारों में हरसू समेट कर।।


जो दिल कहता है वह कर नहीं पाती हूं, दिमाग की बातों में मैं आ नहीं पाती हूं।

 अब कैसे दोनों में करुं सामंजस्य ,

कैसे भुला दूं मैं सारा वैमनस्य।।


नारी हूं मैं यह सोच कर संभल जाती हूं,

 एक पल के लिये दिल को समझा लेती हूं। दिमाग से में मैं पुरुष भी बन जाऊं 

पर वास्तव में नारी हूं ,

दिल की बातों में कैसे आ जाऊं।

 दिल की बातों में मैं कैसे आ जाऊं।


डॉ पूर्णिमा राय,

शिक्षिका एवं लेखिका

पंजाब






Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

डाइट वेरका, अमृतसर में हिंदी शिक्षकों की दो दिवसीय कार्यशाला बाखूबी संपन्न हुई!

राज्य स्तर पर अमृतसर को मिली प्रशंसा

प्राइमरी एवं अपर प्राइमरी बी आर सी ,डी आर सी की एक दिवसीय कार्यशाला हुई सपन्न