कागज की नाव
कागज की नाव
उम्र के नाज़ुक पड़ाव पर
सोचा था कि
तन्हाई साथ नहीं होगी,
पर यह ना पता था
कि सिर्फ और सिर्फ तन्हाइयां ही
हमेशा साथ रहेंगी।
झुकते रहे हम हमेशा
इस ख्याल में कि
कभी तो सिर उठाकर जी पाएंगे,
पर नहीं जानते थे कि
हमारा सिर झुकाना
कमर का टूट जाना होगा!!
तन्हाई भी अक्सर जगा जाती है आत्मविश्वास मन में,
कोई ना भी रहे साथ
तो क्या फर्क पड़ता है
जब यादों का सहारा हो साथ में!
हर एक इंसान जरिया है
एक दूसरे की खुशी और गमी का,
पर अक्सर
दौलत के जुनून में यां
अपने अहम के जाल में फंस कर
भूल जाते हैं कि हम इंसान हैं,
भगवान नहीं।
और कर बैठते हैं भूल
जिससे रिश्ते संभलने की जगह
टूटने के कगार पर
पहुंच जाते हैं।।
रिश्ते तो
कागज की नाव की तरह थे
पानी में जाते ही
खो बैठे अपना अस्तित्व।।
drpurnima01.dpr@gmail.com
रिश्ते और तनहाइयां दोनों ही निराशा की कगार पर क्यों ले जाते हैं?
ReplyDeleteसोच अच्छी है और भाव अभिव्यक्ति सुंदर है।
बधाई!
डा वीणा विज'उदित'
👏
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