धरती माँ : रचनाकारों की नज़र में (सांझा संग्रह -1)by Dr.Purnima Rai

धरती माँ : रचनाकारों की नज़र में (डॉ पूर्णिमा राय) वसुधा की गोद में मानव ने अपनी पहली साँस ली तो उसे जिस अपनत्व का अहसास पहली बार हुआ, वह है माँ! माँ का कर्ज कोई भी नही उतार सका ।रचनाकार अपने सृजन में सदा माँ को किसी न किसी रुप में अनुभव करते रहें हैं।भूमि की गहराइयों में जो सहनशीलता ,ममत्व और सेवा-भाव समाहित है ,उसे सहृदय रचनाकार कवि और सहृदय पाठक ही महसूस कर सकता है ।इसी लक्ष्य के तहत यहाँ धरती जिसे भूमि ,पृथ्वी,भू,वसुधा,वसुंधरा आदि विभिन्न नामों से पुकारा गया है .,से संबंधित विभिन्न काव्य रचनाओं को संकलित किया गया है ..... 1* धरती माँ के प्रति फर्ज कोई विधवा बना रहा है छीनकर इसका श्रृंगार, कोई बाँझ बना रहा है देकर दु:ख आपार, हम वादा करते हैं लायेंगे धरती पर स्वर्ग उतार, गंदगी फैलाकर नरक का खुद खोलते हैं द्वार, बुद्धिमान होकर भी अनोखी दुनिया मिटा रहे हैं... अपनी माँ से बिछड़कर शायद जिना है मुमकिन, क्या पल भर भी हम जी सकते हैं धरती माँ के बिन, फिर भी सहनशिल माँ दर्द सहती है रात-दिन, मानव होकर भी नहीं चुकाते धरती माँ का ऋण, फि...