मिट्टी के पुतले (दोहे)


मिट्टी के पुतले (दोहे)
मिट्टी के पुतले सभी ,करते हैं अभिमान
रोजी रोटी के लिये ,जा पहुंचे श्मशान 
मुर्दे को भी न छोड़ते,गहने लिये उतार
नींद न आती चैन से,धन‌ के ढेर अपार
झूठ भरा संसार यह,मतलब का है प्यार
 सीरत अच्छी देखकर ,तभी बनाना यार
अथक परिश्रम विफल हुआ,खोया मुख का नूर 
तन उजले मन खोट जब,मंजिल दिखती दूर
नीयत जिसकी साफ हो,बांटे जग खैरात
चांद झांकता 'पूर्णिमा', तारों की सौगात
डॉ पूर्णिमा राय, पंजाब

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