कंचन काया मोहिनी
कंचन काया मोहिनी,सिर्फ राख का ढेर (दोहे)
कंचन काया मोहिनी,सिर्फ राख का ढेर।
सीरत शबरी देखकर,राम ने खाय बेर।।1)
करते रक्षा राख की, निष्ठुर कपटी लोग।
अन्त समय पछता रहे,पाप कर्म फल भोग।।2)
मनचाही फसलें मिलें,यत्न कृषक के लाख।
बेमौसम बरसात से,होते सपने राख।।3)
कंचन तन जग सोहता,राख करे है काल।
मन से मन का कर मिलन,बाजे सुर औ'ताल।।4)
चिंता की चक्की चली,इज्जत का व्यापार।
बाप चिता के सामने,राख हुआ घर-बार।।5)
झण्डा ऊँचा देश का,सैनिक रखते धीर।
राख बड़ी अनमोल है,साख बचाते वीर।।6)
भारत की भू के लिये,तन-मन है कुर्बान।
तिलक लगाकर राख का,वीर करेंअभिमान।।7)
हाथ 'पूर्णिमा' कुछ नहीं, जन्म-मरण का खेल।
राख हुये जग रो दिया, हुये हृदय से मेल।।8)
डॉ.पूर्णिमा राय
Wah...bhut khoob👌👍
ReplyDeleteThanks a lot for ur presence on my poetry.
Deleteसुन्दर दोहे
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