माँ बिन सूना जीवन आँगन (सांझा संग्रह)


माँ बिन सूना जीवन आँगन (सांझा संग्रह)



इस अंक में------

(1) डॉ.पूर्णिमा राय---माँ आँचल की छाँव
                               (छंद बद्ध रचनाएं)
(2) प्रमोद सनाढ्य"प्रमोद"---क्यों छोड़ गई तू माँ, (गीतिका)
(3)नीरजा कमलिनी-----माँ ही है भगवान,दिव्यशक्ति
                                    (कविताएं)
(4)कैलाश सोनी सार्थक--माँँ ही सच्चा सार (गीत)
(5)आशीष पाण्डेय --मेरा परिचय मेरी माँ(गीत)
(6)डॉ.अरुण श्रीवास्तव--ममता की मूरत(कविता)
(7)डॉ.सुमन सचदेवा---माँ तो बस माँ होती है(कविता)
(8)शोभित तिवारी---प्रेम की भाषा सिखाती माँ(गीत)
(9)मेहरु पंडित प्यासा---जननी कागुणगान
                                 (महाशृंगार छंद)
(10)राजकुमार सोनी---झोली भर दे माँ (गीत)
(11)अनीता मिश्रा सिद्दी---छुअन माँ की(कविता)
(12)रेनू सिंह----सिसक रहा बचपन(कविता)
(13)प्रांजलि अवस्थी---सुनो न माँ(कविता)
(14)सीमा राय द्विवेदी" मधुरिमा"---माँ ,तुम क्यों गयी
(15)प्रवीण चौधरी---माँ बिन सूने जग के मेले
(16)सत्या शर्मा "कीर्ति"---अनकही बातें(कविता)
(17)दिनेश सूर्यवंशी बेहाल--माँ के हृदय में (गीत)
(18)कामनी गुप्ता--सफर(गीतिका)
(19)तनूजा---माँ (कविता)
(20)ममता बनर्जी "मंजरी"--माँ का अहसास . (लघुकथा)
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0--------संपादकीय-----------0
            
मैं अपने ही वैचारिक द्वन्द्ध में खोयी थी कि बेटी ने आवाज़ लगायी।माँ!क्या हुआ?तुम चुप बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती।पता है तुम्हें माँ,तुम्हारा साथ मुझे हमेशा अच्छा लगता है।जब कभी तुम मुझसे दूर होती हो तो मेरा मन तुम्हारे पास उड़कर पहुँचना चाहता है।बिटिया की बात सुनकर मन के विचारों में एक भूचाल आया जो चाहे क्षणिक था,पर असर अधिक कर गया।मैं सोचने लगी कि क्या माँ की कमी,माँ के पास न होने का अहसास, क्या सभी को जीवन में खलता है याँ ये महज़ कहने भर की ही बातें हैं।फिर सोचने लगी,अगर मेरी माँ न होती तो आज मेरा अस्तित्व न होता,और अगर आज मैं न होती तो मेरी बिटिया का वजूद न होता।कशमकश सी इसी पहेली ने मुझे इस पुस्तक" माँ बिन सूना जीवन आँगन "पर कार्य करने को प्रेरित किया।सच है जिनकी माँ नहीं होती ,उनका जीवन कितना दर्द से भरा होता है,वे ही जानते हैं।माँ चाहे अपनी हो ,चाहे सासू माँ हो,चाहे भारत माँ हो ,विपत्ति के क्षणों में सदैव मानव को उसी की शरण में जाकर चैन और सुकून मिलता है।इस पुस्तक में प्रकाशित सभी रचनाएं माँ के प्रेम,स्नेह, समर्पण,त्याग,जज़बे को सलाम करते हुये विश्व की हरेक माँ के प्रति पूर्ण श्रद्धा भाव प्रकट करती हैं।

संपादकीय
डॉ.पूर्णिमा राय
शिक्षिका एवं लेखिका
पंजाब।
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( 1 )नाम --- डॉ०पूर्णिमा राय
जन्म-तिथि--28दिसम्बर
योग्यता --- एम .ए , बी.एड, पीएच.डी (हिंदी)
ईमेल-drpurnima01.dpr@gmail.com

        माँ आँचल की छाँव (छंद बद्ध रचनाएं)

मुक्तक----
माँ आँचल की छाँव तले।
जीवन के सभी सुख मिले।।
दूर हुये जो नजरों से;
जीवन भर वह हाथ मले।।(1)
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खुलकर बालक हँसता है।
माँ आँचल जब मिलता है।।
नन्हा कोमल स्पर्श पाकर;
माँ का तन-मन खिलता है।।(2)
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बिन माँ के जीवन की बगिया,
     लगे सभी को अन्ध-कूप।
छाँव घनेरी माँ दुनिया में ,
      दिखे कड़कती बाहर धूप।।
तिल तिल साँसें कहती मेरी,
       मिले सभी को माँ का प्यार;
हर पल जीवन वारे अपना,
       माँ तो है ईश्वर का रूप।।(3)
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दोहा मुक्तक ---

माँ के कदमों में मिले ,जन्नत जैसा प्यार ।
माँ छाया में है खिले,जीवन पुष्प बहार।।।
दुख में माँ बनती दवा, रख मुख पे मुस्कान।
पुत्र वियोग पीर सहे,पथ दुर्गम दुश्वार।।(1)
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मिल जाए माँ स्नेह फिर ,कर लूँ मैं दीदार।
माँ हाथों की रोटियाँ, खाऊँ बारंबार ।।
रोटी खाते श्वान हैं,पत्तल चाटें बाल;
माँ किसी की न छीनना ,दो प्रभु माँ का प्यार।।(2)

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अनुकूला छंद---
   
नींद गँवायी,तन-मन वारे।
मात निहारे,गिनकर तारे
नैन बुझे से,सुधि-बुधि खोयी।
आस लगी है,तनिक न रोयी।।(1) ----------------------------------------------------------
भूल भुलैया,बचपन सारा।
अंक बिठाया,नटखट प्यारा।।
सोच विचारे ,पल पल लेखे।
लाल सलौना,बरबस देखे।।(2)
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 ( 2 ) नाम:- प्रमोद सनाढ्य"प्रमोद"
जन्म:- 21 जून1956
शिक्षा:- सिविल इंजीनियर
पता:- "सत्यम्"गोकुल नगर
          आर टी दी सी रोड
          लालबाग' नाथद्वारा
         जिला:- राजसमंद(राज.)
मो.न.:- 919414232515

क्यों छोड़ गई तू माँ, मुझ को (गीतिका)

एक घोर तिमिर अंतस पर छाईं ,
        फिर माँ की आँखे पथराई ।
 लो एक सितारा फिर टूटा,
      कहीँ दूर गगन से आहट आई।।
ममता की मूरत नें जाने 
      किस मुद्रा में ली अंगड़ाई।
उसकी आंखें सूनी-सूनी 
  सब की आंखे भर-भर आई ।।
उसके दामन की खुशबू में        
      ममता महका करती थी।
आज भी मेरी सूरत में माँ  
    बस बच्चा देखा करती थी ।।
मैं जब भी घर से निकलता था  
   वो सामने झट सेआ जाती।    
दे कर दो तुलसी के पत्ते 
 माँ शगुन मेरा फिर बन जाती।।
दही शक्कर का दे कर बुरा  
      चन्दन तिलक लगाती थी।       
नज़र लाल की दूर भगाने,
         मिर्ची लाल जलाती थी।। 
वो पल कैसे भूलूं अम्मा 
      जब तू मुझे डराती थी। 
कह कर आँगन में बाबा है
      खाना खूब खिलाती थी।।
 जब भी मुझ को चोट लगी माँ
        तू व्याकुल हो जाती थी। 
गर्म फूंक के पल्लू से मेरी
      आँखों को सहलाती थी।।
अब मै किसका आँचल ओढूँ
        लोरी कौन सुनाएगा।
पानी भर कर थाली में माँ
         चंदा कौन बुलाएगा।
अब रस्ता कौन निहारेगा
         माँ नज़रें कौन उतारेगा।
आजा मेरे राजा बेटा
      कह कर कौन पुकारेगा।।
अब मैं अपने गीत कविता     
       पहले पहले किसे सुनाऊँ।
जब-जब भी सम्मान मिले माँ  
    वो माला किसको पहनाऊँ।।
दीप दिवाली राखी होली 
           कैसे ईद मनाऊँगा,
जन्म दिवस पर शीश नवाने
      वो चरण कहाँ से लाऊँगा।।
अब कौन कहेगा बेटा मेरा  
      चश्मा तो ठीक करा देना, 
थोड़े पैसे पास है मेरे 
       बाकी तू दिलवा देना।
जाने क्यों माँ तेरी जुदाई 
        सहन नहीं हो पाती है।
जैसे तैसे दिन गुज़रे 
     पर रातें खूब रुलाती है।।
तीज और त्योहार आयेंगे
         बहन बेटियाँ आयेंगी ।
बिन तेरे घर देख के सूना
          आंसू खूब बहायेंगी।।
इतना तो बतला जाती माँ
        कैसे उन्हें संभालूँगा।
हाँ,उनकी सूरत के साये में
       मै तेरे दर्शन पा लूंगा ।।
नहीं मिला मैं कभी खुदा से 
     न रब को मैंनें देखा है।
हर मंदिर की मूरत में माँ
  बस तेरा चेहरा देखा है।।
देखी है तेरे चरणों में 
        मैंनें जन्नत भी देखी है।
मेरे खातिर जो तूने माँगी
       माँ,वो मन्नत भी देखी है।।
हाँ, माँ की बातें और भी है
      पर,शब्द नही है कहने को।
जब भी माँ की बात चलेगी
     आँसू निकलेंगे बहने को।।।
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( 3 )नाम : नीरजा मेहता 'कमलिनी'
जन्म : 24 दिसंबर 1956
शिक्षा : एम्.ए. ( हिन्दी साहित्य व संस्कृत साहित्य ), बी.एड., एल एल.बी.
मूल निवास : लखनऊ (यू. पी.)
वर्तमान निवास : बी-201, सिक्का क्लासिक होम्स, 
कौशाम्बी, गाज़ियाबाद (यू. पी.)
मोबाईल/ईमेल -- 9871028128, 9654258770
mehta.neerja24@gmail.com

माँ ही है भगवान (कविता)

लिखना था मुझे, एक काव्य नया,
लिख बैठी मैं ,महाकाव्य नया।
वर्णन जो किया, वो अथाह हो गया।
रुकी न कलम, कागज़ कम पड़ गया।।

नाम भी उसके ,अनंत लिख दिए,
काम भी उसके ,अनगिनत कह दिए,
स्नेह की कोई पराकाष्ठा न थी।
रुके वो कभी ऐसी चेष्ठा न थी।।।

जीवन दिया, ज़िन्दगी भी दे दी,
खुद काँटे लिए, पुष्प बगिया दे दी
खुशियाँ भी अपनी मुझमें ही चुनीं।
कड़ियाँ भी सभी ले मुझको बुनीं।।

आँखों में छुपी ,प्रेम भावना अपार,
मन में बसी ,ममता पंख प्रसार
हर कदम पर जलाई ,उसने आशा की लौ।
हुई प्रस्फुटित नव विहान की पौ।।

मिला है मुझे ,अनुपम वरदान,
तेरी छवि में ,दिखता भगवान,
पाके तुझे ,मिला जीवन नया।
"माँ" पर लिखा अध्याय नया।।

      माँ--- दिव्यशक्ति ( कविता)

पथ प्रदर्शक बन उसने
किया राह पे उजियारा।
मेरे मानस के अंदर 
दिव्य आलोक जगाया।

मन के अँधियारे पे उसने
है नव दीप जलाया।
खोल दिए हैं द्वार ह्रदय के
ज्ञान प्रवेश कराया।

शुभ-अशुभ, सत्य-असत्य
दे दृष्टान्त समझाया।
सद्कर्मों का महत्व बताकर
नेक मार्ग दिखलाया।

क्या पाप क्या पुण्य सिखाकर
पुण्य प्रताप बतलाया।
सदाचार के गुण बतलाकर
सद्व्यवहार सिखलाया।

शीश झुका मैं करूँ प्रणाम
मनहि प्रेम पुष्प खिलाया।
वो मेरी है दिव्य शक्ति
जिसे "माँ" रूप में है पाया।
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( 4 )नाम :कैलाश सोनी सार्थक (हास्य व्यंग्य गीतकार)
जन्म : 19 जून,1963
शिक्षा : हायर सैकेण्डरी
मूल निवास : नागदा(उज्जैन
वर्तमान निवास : नागदा
मोबाईल/ईमेल --8959794982
7987409287

         माँ ही सच्चा सार (गीत)


माँ बिन सूना जीवन आँगन,
                  खाली ये संसार लगे।
माँ से बनता सबका जीवन
                माँ ही सच्चा सार लगे।।
नर नारी के रूप अनेकों,
          अलग-अलग हैं काम सभी।
रंग मिले जैसा है जिसको,
                वैसा करते नाम सभी।।
नारी माँ का रूप धरे तो
                 देवी का अवतार लगे।।
बिना बाग के फूल नहीं है
              बाग बिना क्या माली है।
माँ बिन सूनी-सूनी बगिया
               माँ से ही खुशहाली है।।
नींव बनाती हर मानव की
               माता ही आधार लगे।।
नमन करूँ सौ बार उसी को
           जिसने माँ का प्यार दिया।
बेटी बहन बहू भाभी के
             नामों को साकार किया।।
माँ के आगे इस दुनिया के
              फीके सब किरदार लगे।।
घर मैं माँ हो जिसके सुन लो
              माता को मत तड़पाना तुम
उसके आँसू दुखदायक हैं
           कभी उसे न रुलाना तुम
दुआ मिले जब माता की तो
             खुशियों का अंबार लगे।।
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( 5 )नाम :आशीष पाण्डेय ज़िद्दी
जन्म : 30 जनवरी,1989
शिक्षा : बीएससी गणित
वर्तमान निवास : शाहनगर पन्ना मध्यप्रदेश
मो....९८२६२७८८३७
ईमेल-ashishpandey173@जीमेल.com

      मेरा परिचय मेरी माँ (ताटक छंद)

माँ बिन सूना जीवन आँगन,
         सूना मन का कोना है।
जिसके सिर ना माँ का आँचल,
       उसे दुखी हो रोना है।।
जिसके मन में माँ का मंदिर,
        वही धन्य कहलाता है।
माँ का प्यार सदा ही सबको,
       जीवन सुख दिखलाता है।।
मेरा परिचय माँ ही मेरी,
             मेरे हृदय समायी है।
मेरी संरचना इस तन की,
          मेरी माँ ने बनायी है।।
इस जीवन क्या सात जन्म तक,
         माँ का कर्ज न भूलूँगा।।
माँ की यादों के झूले में,
       मैं जीवन भर झूलूँगा।।
याद सभी बचपन की बातें,
        मुझको अभी जुबानी है।
लोरी गाकर मुझे सुलाती,
       माँ की यही निशानी है।।
जब रोया मैं रोई माँ भी,
        मुझको गले लगाया है।
जीवन की बाधाओं से भी, 
          लड़ना मुझे सिखाया है।।
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(6)नाम-- डॉ - अरुण श्रीवास्तव " अर्णव "
निवास ----सीहोर , मध्यप्रदेश

माँ बिन सूना जीवन आँगन ,
माँ जीवन का सार सभी ।
किस्मतवाले होते हैं वह ,
मिलता माँ का प्यार कभी ।।

ममता की मूरत होती माँ ,
दिल में करुणा की छाया ।
माँ के आँचल के नीचे ही ,
जीवन का हर सुख पाया ।।

जीवन का सारा यश वैभव ,
संस्कारों के साथ मिला ।
तेरे पालन पोषण से ही ,
माँ शिक्षा का दीप जला ।।

सारे ही दुःख दर्द समेटे ,
फिर भी मन मुस्काता है ।
माँ के गौरव की गाथा तो ,
हर युग सदा सुनाता है ।।
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 (7)नाम -डाॅ• सुमन सचदेवा ,मलोट 
शिक्षा ---एम.ए,बीएड,पीएच .डी
निवास--मलोट,पंजाब
 ईमेल --Sumansachdeva09@gmail.com

माँ तो बस माँ होती है!! (कविता)
                              
हँसती साथ हमारे मिल कर
साथ हमारे रोती है।
लाख हैं रिश्ते जग में लेकिन
माँ तो बस माँ होती है!!

लाड़ लड़ाए सदा दुलारे  
और लुटाती है ममता 
बच्चों के गम को वह अपने 
आंसू से ही धोती है!!

पाती हमें उदास तो वह भी
हो जाती है व्याकुल
हमें हँसाने को वह मन का 
चैन सकल तब खोती है !!

खुशियों से भर देती है वह
दामन सबका हंसकर 
बोझ मगर चिंताओं का वह
बस तन्हा तन्हा ढोती है!!

गम के कांटे सभी छिपाती
अपने ही आंचल में
बीज हमारे आंगन में वह 
खुशियों के ही बोती है !!

लाख हैं रिश्ते जग में लेकिन 
माँ तो बस माँ होती है !!
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(8)नाम :शोभित तिवारी "शोभित"
जन्म : 12 जून,1996
शिक्षा : स्नातक
मूल निवास : लखीमपुर खीरी धौरहरा
वर्तमान निवास : धौरहरा
मोबाईल/ईमेल --7800961090

प्रेम की भाषा सिखाती : माँ( गीत)

जगत में प्यार सबसे माँ ,सदा भरपूर करती है।
हमें चलना सिखाकर वह ,सभी दुख दूर करती है।।

सिखाकर प्रेम की भाषा ,दिलाती जीत जीवन में।
सुनाती है महाराणा ,शिवा के गीत जीवन में।।
हमारे मन की' सब बातें हमेशा जान जाती है।
हमारी जिद सदा माता , जगत में मान जाती है।
न कोई जानता हमको , वही मशहूर करती है।
हमें चलना सिखाकर वो, सभी दुख दूर करती है।

हमारी सोच हरदम ही, यहाँ नादान रहती है।
अगर माँ साथ हो मंजिल , बहुत आसान रहती है।
पिलाया दूध जब माँ ने,लगे जल भी वह गंगें का।
सदा आँचल मुझे माँ का,लगे हिस्सा तिरंगे का।
लगाकर आँख में काजल ,हमें पुरज़ोर करती है।
हमें चलना सिखाकर वह ,सभी दुख दूर करती है। 

अगर माँ साथ हो मेरे , कभी मैं रो नहीं सकता।
खिलाती हाथ से भोजन , मैं' भूखा सो नहीं सकता।
चलाऊँ नाव जब बनती ,रही पतवार मेरी माँ।
पढ़ी मानस महाभारत ,उसी का सार मेरी माँ।
हमारा साथ देकर वे ,हमें मगरूर करती है।
हमें चलना सिखाकर वह,सभी दुख दूर करती है।
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(9)नाम :मेहरू पण्डित प्यासा
जन्म : 09/03/1986
शिक्षा : दसवीं 
मूल निवास : गांव मटौर जिला कैथल(हरियाणा)
वर्तमान निवास : उपरोक्त
मोबाईल/ईमेल --9467563820
mehrupandit@gmail.com

     जननी का गुणगान ( महाश्रृंगार छंद)

लिखूँ मैं जननी का गुणगान
नमन है माँ को बारम्बार।
जगत ये जननी की है देन
मात है जीवन का आधार।।

कभी कान्हा बनें कभी राम
रूप इस मृत्यु लोक में धार।
खेलने को माता की गोद
स्वयं भगवान लियो अवतार।।

छोड़ देती है सब सुख चैन
लगाती निज जीवन को दाँव।
मात वरदानी होती पेड़
सदा देती ममता की छाँव।।

अमृत देती छाती से सींच
बनाती बच्चे को बलवान।
त्यागती सुंदरता को मात
तभी तो पलती है संतान।।

नहीं माँ जैसा कोई और
मात होती भगवान समान।
मात का मन है बहुत विशाल
ढूंढ लो चाहे सकल जहान।।
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(10)नाम --राजकुमार सोनी
जन्म--12 मार्च,1967
संपर्क---भारत इण्टरमीडिएट ,मसौली 
जिला -बाराबंकी
मो-----8090216365

झोली भर दे माँ( गीत)

झोलियाँ गरीबों की माँ खाली भरदे।
हर घर में हे मैया खुशहाली कर दे।।
 
सूना रहे न कोई आँगन।
माँ पुलकित हो सबका तनमन।
सब कष्टों से दुनिया यह खाली कर दे।
हर घर में .....

सबके हो माँ महल अटारी।
महके सबकी माँ फुलवारी।।
हरी भरी मैया हर इक डाली करदे।
हर घर में.......

विनती मेरी मात ये सुन लो।
सबके दुखडे़ मैया हर लो।
दूर सभी हे मैया कंगाली करदे।
हर घर में..।।।

राज दीदार माँ का पाये।
तेरा ही गुणगान ये गाये।ः
निर्धन की हर रात को दिवाली करदे।
हर घर में.....

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(11)नाम-अनीता मिश्रा 'सिद्दी'
जन्म -28 सितंबर
शिक्षा --botany आनर्स
लेखन--हिन्दी एवं भोजपुरी
मूल निवास--पटना( बिहार)
वर्तमान निवास--हजारी बाग,झारखंड
मो---9431334653

 
छुअन माँ की (कविता)

मां तेरी छुअन ही पहला प्यार मेरा
दुख सह कर गर्भ में पाला
तुझे नमस्कार मेरा!!

नहीं कोई वजूद तुम बिन
है तू संसार मेरा
जिन्दगी की कड़ी धूप में
घनी छाया प्यार तेरा!!

हाथ पकड़ कर चलना सीखा,
खाना सीखा पीना सीखा
तू जीवन आधार मेरा !!

स्वर्ग से बढ़कर तेरी सेवा
तुझ सा नहीं कोई देवी देवता
मन-मंदिर में 
तू ही है अवतार मेरा!!

श्रापित सी लगती ये दुनिया,
वहशी सारे लोग लगते
अगर न मिलता प्यार तेरा!!

कंटक -कठिन पथ मेरा
तम सा लगता जीवन
आशीष से तेरे हो ग या
मार्ग उजियारा मेरा!!

स्वप्न में भी न तुझसे बिछड़ जाऊँ
हृदय-द्वार पर मेरे 
सदा रहेगा माँ अधिकार तेरा!!

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 (12)नाम-- रेनू सिंह
जन्मतिथि--1 दिसंबर
शिक्षा---बीएस.सी,एम.ए हिन्दी
निवास ---टुंडला ,फिरोजाबाद
मो---8954779724,
ईमेल--renu11289@gmail.com
 
सिसक रहा बचपन (ताटंक छंद)

किससे माँगू दूध मलाई,
सारे बंधन झूठे हैं।
जान छिड़कते थे जो मुझ पर,
मुझसे ही अब रूठे हैं।
कौन सिखाये पढ़ना लिखना,
जो समझे मेरी बोली।
जीवन के सब रंग उड़ गये,
फीकी लगती है होली।
खोया अपना बचपन मैंने,
जिद करना भी छोड़ा है।
खेल खिलौने भूल गयी मैं,
मिट्टी का घर तोड़ा है।
फूलों सा खिलता था चेहरा
देख मुझे मुस्काती थी।
नींद देख मेरी आँखों में,
चैन तभी वह पाती थी।
माँ के आँचल की वह छाया,
कौन मुझे दे पाएगा।
सिसक रहा है बचपन मेरा,
वक़्त लौट ना आएगा।
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(13)नाम : प्रांजलि अवस्थी
जन्म : 5 सितम्बर 1979
शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट (अंग्रेजी साहि.)
मूल निवास : कानपुर 
वर्तमान निवास : कानपुर 
मोबाईल/ईमेल --9084830247
     pranjaliawasthi@gmail.com

       सुनो ना माँ (कविता)

सुनो ना माँ ...
चाहे सोने का बिस्तर हो 
याँ चाँदी की चादर हो 
फिर भी करवटें बदलता हूँ मैं !!
निराशा और बैचेनी में  
तेरे आँचल की याद करता हूँ मैं !!
स्वर लहरी सुंदर सी कानों से गुजरती है
मधुर संगीत सजी आवाज मंत्रमुग्ध करती है 
असर तेरी आवाज का दिल पर है हावी
 तेरी लोरी और बातें याद करता हूँ मैं 
आँखें मूँद कर तुझसे मिलता हूँ मैं !!
माँ !
गलतियाँ मुझसे अभी भी हैं होतीं।
जिम्मेदारियों में संवेदनाऐं हैं खोतीं।।
लापरवाह सा रहता हूँ पास जब तू होती है
कमी भी बहुत ख़लती है जब दूर तू होती है!
पता नहीं ,क्यूँ हम बड़े हो जाते हैं 
दुनियादारी तले खुद़ को दबा पाते हैं !
इसी लिए तो 
बचपन में मैं खो जाता हूँ अक्सर 
मुँह तेरे आँचल में छुपाता हूँ अक्सर !
जब निर्दयी बेटों के किस्से हूँ सुनता
उँगलियों पर अपने कर्तव्य हूँ गिनता !
क्या मैंने कभी तुझको सुख है दिया 
क्या मेरे संग लम्हा खुशी का है जिया!
शायद बहुत नाकाम रहा हूँ मैं
फिर भी तेरे कलेजे का टुकड़ा हूँ मैं!!
मेरी माँ ....
तू मुझको सदा माफ़ करना 
गलतियों को भूल कर हृदय से लगाना !
मेरे उलझे बालों में उँगलियाँ फिरा कर 
मुझे अपना राजा बाबू बताना !
वही दुलराना ,गले लगाना 
गोद में सर रखकर माथे पर मेरे 
चुम्बन को रखना !
ममता से अपनी 
मेरे जीवन में तुम रोशनी भरना!
तेरा आशीष मुझमें सामर्थ्य भरता है
माँ !मेरी माँ !यह दिल 
तुझे बहुत याद करता है!!
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(14)नाम : सीमा राय द्विवेदी "मधुरिमा"
जन्म : 1 अगस्त 
शिक्षा : एम् ए ( अंग्रजी साहित्य, इतिहास , सोशियोलॉजी ,बीएड )
मूल निवास : लखनऊ !!!
वर्तमान निवास : लखनऊ !!!
मोबाईल/ईमेल -- 8188828767
Seemamadhurima@gmail.com

माँ तुम क्यों गयी(कविता)

माँ तुम क्यों गयी छोड़
जीवन से मुहँ मोड़ ------

हमें यूँ बेसहारा कर गयी 
छिन हमारा सहारा गयीं -----

जब मन दुखी हो जाएगा
बता किसे नजदीक पायेगा ---

जब तू साथ रहती थी
हर जिद्द मैं तुझसे करती थी --

अब कौन मेरी सुनेगा बात
किससे कहूँगी बीती आप --

तुझसा न कोई अब प्यार करेगा
न हमपे जीवन न्योछार करेगा ---

माँ बता क्या हुई हमसे भूल 
चुभ गया तेरी मृत्यु का शूल ----

न होगी जिसकी भरपायी
पीड़ा वह मैंने है पायी ----

उफ तुझ बिन मनवा न लागे
बस हरदम मन तुझको माँगे ---

अब तो तू न मिल पायेगी 
पीड़ा बिछड़न की साथ ही जायेगी ---

माँ जीवन से बहुत ही गिले हैं
कैसे बताऊं दुःख जो मिले हैं ---

तुझ बिन हमको कुछ न भाये
बस तेरा ही चेहरा आँखों में आये ---

माँ तुझको है मेरा जीवन अर्पण 
तेरे बिन सूना जीवन आँगन !!!

*****************************************


(15)नाम : परवीन चौधरी 
जन्म : 17 सितंबर 
शिक्षा : स्नातक
मूल निवास : हिसार(हरियाणा )
वर्तमान निवास : सिलीगुड़ी (पश्चिम बँगाल)
मोबाईल/ईमेल --9933122228/ 9564106966
ईमेल---smartparveen91@gmail.com

  माँ बिन सूने जग के मेले ( गीतिका)

माँ बिन सूना जीवन आँगन ।
माँ बिन सूना जग का प्रांगण ।।

माँ बिन सूने जग के मेले ।
माँ बिन हम भीड़ में अकेले ।।

माँ बिन सूना लगे मायका ।
माँ बिन फीका जुबाँ ज़ायक़ा ।।

माँ बिन सूने सभी त्योहार ।
माँ बिन सूने सभी घर - द्वार ।।

माँ बिन बेटी कौन बुलाये।
माँ बिन गोद कौन सुलाये ।।

माँ बिन बिखर गये हैं सपने ।
माँ बिन दूर हुए हैं अपने ।।

ना जाने माँ कहाँ खो गई ।
हमसे रूठ के कब सो गई ।।

व्याकुल नयन को दीदार दो ।
ख़्वाबों में आकर दुलार दो ।।

अधीर है मन माँ संबल दो ।
असहाय कमज़ोर को बल दो ।।
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(16)नाम : सत्या शर्मा " कीर्ति "
जन्म : 30 जून
शिक्षा : एम . ए, एल एल . बी
मूल निवास : पटना ( बिहार )
वर्तमान निवास : राँची ( झारखण्ड )

अनकही बातें

माँ कहनी है तुमसे कुछ अनकही सी बातें।
कई बार चाहा,
 कह दूँ तुमसे अपनी बातें 
पर कहाँ था वक्त, तुम्हारे पास 
तुम भागती रही ,
सफलता और शोहरत के पीछे!!
और मैं अकेली ही उलझती रही 
तुम्हें समझने में !!
जाने कितनी रातें तुम्हें पकड़ कर
सोने के लिए मचली हूँ मैं ,
जाने कितने गीले तकिये गवाह हैं
मेरे अकेलेपन का!!
जानें कितनी अँधेरी ,डरावनी रातें 
सिर्फ तुम्हारी मौजूदगी के एहसास से
लिपट कर गुजारी हैं ।
बहुत ढूंढा माँ!!मैंनें तुम्हें
जब बचपन बदल रहा था यौवन में!!
समझनी थी कितनी अनसुलझी सी बातें 
पर ...
नारी स्वतंत्रता की पथगामिनी तुम
देती रही भाषण !!
लिखती रही लेख
उन्ही लेखों का प्रश्न चिन्ह (?)थी मैं!!
तुम्हारी ही कोख से जन्मी मैं
तुम्हारी पुचकार से दूर
तुम्हारी ममतामयी गोद से वंचित
थपकियों के एहसास से परे
माँ द्वारा दी जाने वाली सीख से जुदा
ढूँढती रही कार्टूनों और नेट की दुनिया में
 माँ वाला प्यार!!माँ सुन लो 
मेरी अनकही पुकार!!
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(17)नाम :दिनेश सूर्यवंशी बेहाल (गीतकार)
जन्म : २३/८/१९८७ 
शिक्षा : बी ए फाईनल
मूल निवास : डुंगारियां जुन्नारदेव छिन्दवाडा मध्यप्रदेश
वर्तमान निवास : डुंगारियां नं ४ परदेशी मोहल्ला तहसील जुन्नारदेव जिला छिन्दवाडा पिन कोड ४८०५५३
मोबाईल/9479486888
ईमेल -- surawanshidinesh205@gmail.com


  माँ के हृदय में!!(गीत)

मैं हँसता हूँ तो हँसती है ।
मैं रोता हूँ तो रोती है ।।
माँ के हदय में अपार ममता होती है।...
कुछ गलती करने में समझाती है।।
जो रूठ जाऊँ तो मनाती है।
मैं गर भूखा सो जाऊँ तो 
वह भी भूखी ही सो जाती है।।
माँ के हदय में ....।।.
एक बूँद आँसू मेरी आँखों में आने नहीं देती ।
गिरता हूँ तो संभाल लेती है
ठोकर मुझे खाने नही देती ।।
अधूरी राहों में ज्योति बन जाती है ।
माँ के हदय में .........
घबरा जाती है सहम जाती है  
जिस दिन घर लेट आऊँ मैं ।
निहारती है सूरत मुस्कुराके जब मैं आ जाऊँ । ।
देखके सलामत लाल को अपने चैन पाती है ।
माँ के हदय में..........
कितना ही बेअदबी से पेश आये बेटा अगर।
फिर भी सलामती की दुआँ माँगता 
है बेटे की माँ का जिगर ।।
जिस हाल में भी रहे बेटे के लिये
 दुआयें खुशियाँ सजाती है ।
माँ के हृदय में..।।।।।।।
"बेहाल" हरदम शुक्र माँ का अदा करो।
दिल ना दुखाओ माँ का खुशियाँ उसे अता करो ।।
सारी दुनिया की खुशी माँ के चरणों से ही मिल जाती हैं।
माँ के हृदय में..............
 *****************************************
  
(18)नाम -कामनी गुप्ता
जन्म -18 फरवरी ,
मूल निवास-जम्मू
वर्तमान निवास- सपत्नी राकेश गुप्ता ,हाऊस नंबर 97 ,सैक्टर .-1,नानक नगर, जम्मू तवी,180004
Mobile-9697254490
Kamnigupta18 @gmail.com

          सफ़र

ज़िन्दगी के सफ़र में कितने रंग देखे।
कुछ बिछड़ गए कुछ चलते संग देखे।।

 न समझे बातें जो करती थी घायल;
सबके जीने के अपने ढंग देखे।

घर नहीं दिखे अब पहले सा खुशनुमा;
रिश्तों के पल में बदलते रंग देखे।

एक माँ थी बस जो जोड़ती सभी को;
बाद माँ के सब लड़ते जंग देखे।

शायद असलियत यही है "कामिनी";
चेहरे असली सभी हो दंग देखे।
 
******************************************

(19)नाम : तनूजा
जन्म : 6 अप्रैल 
शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएशन एवं डिपलोमा होल्डर
मूल निवास : लखनऊ
वर्तमान निवास : लखनऊ
मोबाईल/ईमेल -- logontanu@gmail.com

          माँ तुम मेरी शक्ति हो (कविता)
                       
मां तुम मेरी
जग जननी हो
जीवन की अभिव्यक्ति हो
इक सांचा नाम तुम्हारा
मां तुम मेरी शक्ति हो...

मां तुम अर्पण
युगों बनी दर्पण हो
जीवन आदिशक्ति हो
इक सांचा नाम तुम्हारा
मां तुम मेरी भक्ति हो..

मां तुम देवकी
बनी तुम यशोदा हो
जीवन इच्छाशक्ति हो
इक सांचा नाम तुम्हारा
मां तुम मेरी बिभक्ति हो...

मां तुम प्यारी
निश्चल प्रेम की वारी हो
जीवन की सारशक्ति हो, तुम 
इक सांचा नाम तुम्हारा
मां तुम मेरी आत्मशक्ति हो..!!

    माँ(कविता)

एक बात आज भी..
माँ की लगे भली...
माँ के आँचल का अर्थ..
तू समझेगी होकर बड़ी..

वक्त के साये में लिपटी..
माँ का आँचल जग में भली...
मेरा प्यार तुझे ये डाँट सही..
तू बनेगी कल की पहचान यही...

कल से जुड़ा मेरा साया...
तू जब कली बन के खिली..
मेरे आँचल से निकल कर ..
तू बन के दिखेगी मेरी छवि...

वक़्त के साथ हुई बड़ी..
माँ की आँखो में छिपी नमी...
ज़िंदगी के सच से जुडी..
जब माँ के अस्तित्व से मिली...

सच से गुजर रही माँ ..
माँ का अर्थ समझ रही ...
समा गया मुझमे ये विश्वास..
नंदिता जीवन में माँ ही ऐसी बनी....!!
******************************************


(20)नाम : ममता बनर्जी "मंजरी
जन्म : 21मार्च,
शिक्षा : स्नातक
मूल निवास : पुरुलिया (प.बंगाल)
वर्तमान निवास : गिरिडीह (झारखण्ड)
मोबाईल/ईमेल --7631107684
ईमेल-reach2mamata92@gmail. com

माँ का अहसास(लघुकथा)

मैंने कितनी बार कहा तुम्हें कि इस हालत में अकेली
घर से मत निकला कर ,दुष्टात्मा परेशान कर सकती
है.।उल्टियां हो रही है तो होने दे ,कोई पहाड़ तो
नहीं टूट पड़ा,ऐसी हालत में शारीरिक तकलीफें
होना स्वाभाविक है....घबरा मत ,थोड़ी और सहन
कर ,सन्तान का मुँह देखते ही सारी तकलीफें भूल
जाएगी तू ।
अरी कहाँ हो तुम ,मुन्ना रो रहा है। जल्दी से आकर
दूध पिलाओ उसे....मुन्ना इतना रो क्यों रहा है ?
कहीं पेट-वेट दर्द तो नहीं कर रहा है उसका ?कितनी
बार मना किया है तुझे कि मटर -कँटहल वगैरह मत खाया करो।सुनो ,अपनी जीभ पर थोड़ी लगाम दो
अब से और कुछ महीनों के लिए दही - लस्सी भी
पीना छोड़ दो ,मुन्ने को ठण्ड लग जाएगी।
आज कितनी बार तेल-मालिश की है तुमने मुन्ने
की ?...और हाँ,लो यह दवा रख लो..मुन्ने को हर
दो घंटे पर पिलाती रहना...रात को थर्मामीटर
पास ही रखना...जल्दी-जल्दी घर के काम निपटा
लो,आज हम मुन्ने को डाक्टर के पास ले चलेंगे..
क्या कहा ?तुम खाना खा रही हो..ठीक है,ठीक
है..खाना कुछ देर बाद में खा लेना ,पहले यहाँ आकर
मुन्ने का बदन साफ करो..उसने अपना टट्टी समूचे
बदन में लेप रखा है...हूं ! क्या हुआ ? नाक क्यों सिकोड़ रही हो तुम ?माँ बनी हो तो अपने बच्चे की देखभाल तो तुम्हें ही करनी पड़ेगी न !
माँ,भूख लगी है ।जल्दी से खाना दो....आज मैं रोटी
नहीं खाऊँगा ,आलू के पराठें बना दो मेरे
लिए!!माँ,मेरा होम-वर्क करवा दो न जरा...आज मुझे
एक सुन्दर सी लोरी सुना देना सोते वक्त......कल स्कूल में टीचर ने आपको बुलाया है...मेरी कमीज सील दो न ,बटन भी टाँकनी पड़ेगी पैंट में...आज टिफिन में क्या दोगी मुझे ? जाओ ,मैं तुमसे बात नहीं करता ।माँ, हम दोनों लूडो खेलेंगे ।
माँ,आज मेरे कॉलेज के चार-पाँच दोस्त आएंगे घर
पर..तुम उनके लिए कोई अच्छी सी डिश बना
देना...मेरा काला वाला बुर्शट धो देना जरा ...आज
मेरी इंटरव्यू है नौकरी के लिए,तुम मन्दिर जाकर मेरे
नाम पर चढ़ावा चढ़ा आना...तुम्हारे पास कुछ रुपये हैं
तो दे दो मुझे ,पापा को इस बारे में मत बताना ।
माँ ,मेरी शादी की सारी तैयारियां तुम्हें ही
करनी है...मैं सिर्फ दुल्हन लाऊँगा ।आज पिताजी के साथ बाजार जाकर शादी की खरीददारी कर लेती तो अच्छा रहता ।
माँ, तुम अपना काम करो न ,बेवजह क्यों टाँग
अड़ाती हो हर बात पर....
ओह! गिरा दिया न दवा की शीशी आज फिर
जमीन पर.....पता है मुझे कि तुम फिर कहोगी कि तुम्हें ठीक से दिखाई नहीं देता...अब बताओ मैं क्या करुँ ?चाहे जैसे भी हो,इतनी महँगी दवा मुझे फिर से खरीदनी पड़ेगी!!
माँ आज " मदर्स डे" है, चलो आज तुम्हें मन्दिर लेकर
जाऊँगा....अरे !तुम्हें तो तेज बुखार है !...अभी डाक्टर
बुलाता हूँ मैं।
माँ,आँखें खोलो..आँखें खोलो न माँ..मत जाओ
माँ...मत जाओ मुझे छोड़ कर माँ । माँ...माँ..माँ.
.माँ........!!!
******************************************
संकलित एवं संपादित
डॉ.पूर्णिमा राय,
शिक्षिका एवं लेखिका
आलोचना पुरस्कार विजेता भाषा विभाग पटियाला,पंजाब।
drpurnima01.dpr@gmail.com



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