होली अच्छी है (कविता)

 पोस्ट सँख्या-54

होली अच्छी है (कविता)



होली अच्छी है 

खुद खेलो या

 औरों को रंग खेलते देखो तो

चेहरे पे भीनी मुस्कान बिखर जाती है!

और अगर कोई चुपके से

पीछे से तुम्हारे चेहरे को

 गुलाल से रंग दे तो

पहले मुँह से निकलती है गालियाँ

फिर सुनकर कि होली है

लबों से निकलती है फिर दुआएं!

क्यों उदास है रहना होली पे

खुशियाँ खुद ही बटोरनी पड़ती हैं

चाहे मानो किसी अपने की बात 

या करो मनमानी !

होली पर रंग-ओ-गुलाल न लगाया

 तो फिर रहेगा जीवन "पूर्णिमा" बेरंग 

लगेगा रंग जब 

महक उठती है जिंदगी

कुछ पलों के लिये !!

डॉ.पूर्णिमा राय,पंजाब 




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