बारिश (हास्य व्यंग्य)
असमता के पाटों के बीच, पिसता जीवन करे गुहार
बारिश की बूँदों से टपके,दर्द टीस और हाहाकार!!
न जाने क्यों ?लोग यह नहीं सोचते कि हमारा इस तरह का बर्ताव एक तो हमारे खुद के लिये हानिकारक है और दूसरा अन्य व्यक्तियों को ,भी इससे नुक्सान होगा।सड़कें कच्ची थी !नहीं, नहीं,पक्की थी ।अपने ऊँचें घरों को अन्य लोगों के घरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की लालसा ,चाहना ने पक्की सड़क को मिट्टी से ढककर कच्चा बना दिया था।पानी का पाईप बाहर खुली सड़क पर ओवरफ्लो होता, टैंकी भरने पर पानी कभी किसी राही को नहला देता,तो कभी किसी गुज़रती गाड़ी को नहला देता। कहीं झगड़ा न हो जाये,दो चार बार पुलिस भी आ चुकी थी।अब जिसको मुश्किल लगती ,वह खुद बात करे ,औरों को क्या।सबको अपना गेट साफ चाहिये था।हाँ ,भई
साफ-सफाई घर की तो होनी ही चाहिये ।गली-मुहल्ले का रास्ता कीचड़ सना रहे ,हमें क्या!हम तो पैंट टाँग कर जूते हाथ में पकड़ कर निकल ही जायेंगे ।वैसे बलि का बकरा कौन बने! ना जी,हम तो दूसरों के खाली पड़े प्लाट से ईंटें चोरी कर सकते हैं,मिट्टी उठाकर घर का आँगन ऊँचा कर सकते हैं ,हमसे तो न होगा ,किसी को जाकर कहना कि अपना पाईप अन्दर कर लो,फ्री में लोगों को नहला रहे हो!!ना जी,एक बुजुर्ग ने कहा।इधर की चुगली उधर करवा लो,सारे मुहल्ले की खबरिया ले लो हमसे !पर हम तो न कहेंगें कि क्यों रे,बार-बार मिट्टी का बाँध सड़क पर काहे बना देते हो,भई, बारिश कौन सी रोज आनी है,पानी तो पानी है ,हर रंग में घुल जाये।जिधर ढलान हुई ,चला जाये।उसी पानी से ही सीख लो जरा झुकना,हर रंग में रंग जाना।ना जी,हम तो न कहेंगें ,मुहल्ले की अम्मा ने खाँसते हुये कहा ," हमारी तो दाल भात साँझी है,रोज शाम को फ्री में मिलता है भाँति-भाँति का व्यंजन।"
अचानक तेज आँधी चली,बारिश का अनुमान लगाया जाने लगा।कितनी जोर से होगी।पानी किधर किसके घर की ओर इकट्ठा होगा।जो बुढ़िया पिछले साल मर गई थी ,उसके खाली पड़े घर के परनाले के आगे ईंट घुसेड़ने का प्रोग्राम बनाया जाने लगा।हाय!अल्लाह !मेरा तो हँसी से बुरा हाल था ,लोगों की ऐसी चालें देखकर!खुदा भी अजीब है ! काली घटायें दिन में दिखाई और औले आधी रात को!! दिन चढ़ा ,6.30 बजे के पास स्कूल वैन आई,मजे से गाड़ी चलाता ड्राइवर बच्चों को बिठाकर चल पड़ा ।रात की बरसात से गीली सड़कें , धम्म से गाड़ी का पहिया मिट्टी में घुस गया।बच्चे डरे सहमे हुये! और माता-पिता जोर आजमाइश करते हुये!!
डॉ.पूर्णिमा राय,पंजाब
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