बुजुर्ग :समाज का सशक्त आधार


बुजुर्ग :समाज का सशक्त आधार



बुजुर्गों का आदर-सम्मान करना हमारी उच्चकोटि की भारतीय संस्कृति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। बुजुर्ग घर-परिवार,समाज देश व राष्ट्र की नींव का सशक्त आधार हैं जिनके महत्तव को अनदेखा करना अपने आपको भीतर से खोखला करने के समान होगा ।बुजुर्ग शब्द को एक सीमित परिधि जैसे कमजोर शरीर ,बेकार ,व्यर्थ का बोझ, फालतू सिर खाने वाला,निकम्मा ,निठल्ला आदि संबोधनों से संबंधित मानकर ही स्वीकारना ,समाज की संकीर्ण मानसिकता का उद्घाटन है,जोकि उचित नहीं है।। बुजुर्ग शब्द के साथ ही हमारे मानसपटल पर एक ऐसी छवि अंकित होने लगती है जिसने अपने जीवन में उम्र के साथ-साथअनेक अनुभव प्राप्त किये हों। हमारी सोच ,हमारा सकारात्मक रवैया बनाने में बुजुर्गों की भूमिका अक्षुण्ण है।


बुजुर्ग समाज के अनमोल धरोहर हैं। वें सामाजिक-धार्मिक राजनैतिक व्यवस्था की नींव के मजबूत आधार हैं। वे एक मार्गदर्शक हैं सलाहकार है शिक्षक हैं जो हमें हमेशा विवेकपूर्ण निर्णय करने में सहायता करते हैं क्योंकि उनके अनुभव जीवन का भोगा हुआ यथार्थ सत्य हैं।जीवन की कठिन परिस्थितियों बुजुर्गों के सही निर्देशानुसार हम सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाते हैं।घर के छोटे कार्यों से लेकर बडे फैसले करने में बुजुर्गों का योगदान महत्वपूर्ण हैं। किसी की अहमियत का अहसास तब होता है जब वह अपने से दूर हो ।ठीक इसी तरह जब बुजुर्ग जीवित होतें हैं तब उनकी कद्र नही होती ,उनके चले जाने पर उनकी कमी खलती है।तो क्यों न समय रहते हम उनको उनका सम्मान दें ।वह सिर्फ प्रेम की चाह रखते हैं उनकी इस भावना पर फूल अर्पित करें ।स्वयं को बदलें जमाना खुद ब खुद बदल जायेगा।

आज के आधुनिकता से सरोबार जीवन में आपाधापी की चकाचौंध में केवल बुजुर्ग ही हैं जो घर में बच्चों की देखभाल करते हैं। बुजुर्गों की छत्रछाया बच्चों के लिये वरदान है।समाज में गिरते नैतिक मूल्यों को बचाने में उनकी भूमिका सर्वोपरि है ।वे बच्चों के उचित सलाहकार हैं वे उनको भावात्मक एकता का संबल प्रदान करते हैं वरन् आज के एकाकी जीवन में अन्तरजाल की दुनिया में बच्चों का सच्चा पथ प्रदर्शक कौन है?? ये जानते हुये भी बुजुर्ग आज अपने ही घरों में जिन्हें उन्होनें कभी अपनत्व व प्यार से सींचा था भिखमंगे बने हुये हैं, विभिन्न तरह के रोगों का शिकार हैं पर उनके दुख दर्द को बांटने वाला कोई नहीं। शोध अध्ययन उपरांत यही तथ्य सामने आते हैं कि वृद्धावस्था में शरीर थकने के कारण हृदय संबंधी रोग, रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों के दर्द जैसी आम समस्याएँ तो होती हैं, लेकिन इससे बड़ी समस्या होती है भावनात्मक असुरक्षा की। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ाहट, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।आज परिवारों में बुजुर्ग लोगों की परिचर्या के लिए नौकर रख दिए जाते हैं या उन्हें वृद्धाश्रम भेज दिया जाता है। यह सही है कि इससे उनकी परिचर्या तो हो जाती है, लेकिन भावनात्मक रूप से बुजुर्ग लोगों को वह खुशी और संतोष नहीं मिल पाता जो उन्हें अपने परिजनों के बीच में रहकर मिलता है

आये दिन समाचार पत्र बुजुर्गों पर हो रहे अत्याचारों की कहानी परोसते हैं ।लेखिका उषा प्रियंवदा की कहानी" वापसी " भी गजाधर बाबू के जीवन की त्रासदी व्यक्त कर उनको सम्मान देने की पक्षधर है । बुजुर्ग वह पेड है जो जितना अधिक उम्र का होता गया उतना ही फलदायक होता है।मध्यप्रदेश के सामाजिक न्याय मंत्री गोपाल भार्गव जी ने कहा था कि ’जिन घरों-परिवारों में बुजुर्ग माता-पिता की ठीक ढंग से देखभाल अथवा संरक्षण नहीं हो रहा है उनके विरुध्द ’माता -पिता भरण -पोषण अधिनियम ’ के तहत सख्त कार्यवाही की जाएगी। अधिनियम के तहत दस हजार रुपये का जुर्माना एवं तीन माह की कैद जारी किया गया है।’ कानून बनाने से नहीं मानसिकता बदलने से बुजुर्गों की स्थिति में सुधार किया जा सकता है । हमारे देश में बुजुर्गों (60 साल और इससे ज्यादा उम्र) की तादाद तकरीबन 10 करोड़ है यानी कुल आबादी का 8.2% संख्या बुजुर्गों की है। बीते कुछ सालों में भुखमरी का शिकार होने वाले लोगों में सर्वाधिक संख्या बुजुर्गों की है ।बुजुर्ग लोगों की समस्याओं के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना और सामूहिक प्रयास करना ही बेहतरीन उपाय हो सकता है। बुजुर्गों को घर से अलग वृद्धाश्रम में रखने का झुकाव समाज की हो रही दुर्गति का द्योतक है जिससे बचने का हर संभव प्रयत्न देश के बच्चों, युवा वर्ग,एवं स्त्री वर्ग को करना होगा।

युवावर्ग को समझना होगा कि बुजुर्ग मन के प्रति सद्भाव बनायें रखें ।।समाज का कटु सत्य है कि आज का युवा आने वाले कल में बुजुर्ग की संज्ञा से विभूषित होगा लेकिन फिर भी हम अमानुषीय व्यवहार करने से चूकते नहीं हैं। केवल दो वक्त की रोटी दे देने से हम बुजुर्गों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह कर बाकी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकते।उनको जीवन के अंतिम समय में अधिक भावनात्मक सहारा चाहिये जो हमें देना होगा।तभी हम नई भावी पीढी को सुरक्षित सकारात्मक सोच प्रदान करने में सक्षम हो पायेंगें।दूसरी ओर बुजुर्गो को भी युवा मन की भावनाओं के साथ तालमेल स्थापित करना होगा छोटी छोटी बातो पर टीका टिप्पणी को अनदेखा करना होगा अन्यथा परिवार के ढांचे में दरार आयेगी जिसे भरना मुश्किल होगा।

डॉ.पूर्णिमा राय,पंजाब





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