वहीं रावण जलाये जो स्वयं राम है
अचिन्त साहित्य
(बेहतर से बेहतरीन की ओर बढ़ते कदम)
" वही रावण जलाये जो स्वयं राम है "
(दशहरा--विशेषांक 2017)
यह विशेषांक 2017 में संपादित किया गया था और अचिन्त साहित्य वेबसाइट पर प्रकाशित था।किसी कारणवश मेरी वह वेबसाइट बंद हो गई ।अब आज अपने ब्लॉग अचिन्त साहित्य पर प्रकाशित कर रही हूँ।
विजयदशमी /दशहरा की सभी को हार्दिक बधाई!!
इस विशेषांक को अपनी बेहतरीन रचनाओं से सजाने वाले सभी रचनाकारों ,सुसाहित्यकारों का हार्दिक आभार!!
रचनाएं एवं रचनकार
1)वही रावण जलाये,जो स्वयं राम है:डॉ.पूर्णिमा राय
2)विजय दशमी :बलविंदर अत्री
3)क्योंकि हम राम न हुए: डॉ भावना तिवारी
4)रावण महाज्ञानी :दीपक कुमार
5)ਦੁਸਹਿਰਾ :रघबीर सिंह सोहल
6)गुण हैं जिसमें राम के,रावण जलाने का अधिकार उसे : राजबाला "राज"
7)मैं रावण बोल रहा हूँ:सुशील शर्मा
8)दशहरा:कल्पना मनोरमा
9)शायद रावण नही मरेगा :सुशीला जोशी
10)रावण अभी जिन्दा है: बृजेश अग्निहोत्री "पेंटर"
11)और रावण जल उठा:डॉ.सुमन सचदेवा
12)हे रावण तुम बुरे थे : अँजना बाजपेई
13)रावण मिलते हैं गली गली :डॉ. सुषमा सिंह
14)क्या वास्तव में रावण राक्षस था:अनीला बत्रा
15)कोई राम नहीं है:संगीता पाठक
16)रावण- दहन का हक: डॉ चन्द्रा सायता इंदौर
17)विजयदशमी आई है: वीपी ठाकुर
18)रावण जन्मा धरती पे : रूबी प्रसाद
19)दृष्टिकोण:आभा सिंह
20) कलयुग में रावण जिन्दा है:विनोद सागर
1)वही रावण जलाये,जो स्वयं राम है:
डॉ.पूर्णिमा राय
शिक्षिका एवं लेखिका
अमृतसर (पंजाब)
वही रावण जलाये,जो स्वयं राम है।
हृदय का भ्रम मिटाये,राम का नाम है।
R- रसिक वृत्ति से लंकेश का पतन हुआ
A---अभिमानी ,कपटी व धूर्त माना गया
V---विवेकहीन एवं व्यभिचारी कहलाया
A--अहम् में लिप्त होकर ज्ञान का विनाश हुआ।
N--नश्वर एवं क्षणभंगुर संसार की माया समझा गया।
आज दशहरा है ।एक मुख और दस सिर वाले रावण का वध करने का दिन है।यह सर्वविदित है कि आज उसे राम जोकि एक पूर्ण पुरुष ,चरित्रवान,मर्यादा पुरषोत्तम हैं,वही उसे मौत के घाट उतारेंगे।अब तो यह स्थिति है कि जो पकड़ा गया वह चोर है यानि रावण है जो पकड़ता है वह साधु है ,राम है ।"अठन्नी का चोर"कहानी में उपन्यास सम्राट मुँशी प्रेमचंद जी ने यही बताया है कि जिसका अपराध साबित हो या न हो ,अगर वह पकड़ा गया तो वह अपराधी माना जायेगा,उसे दण्ड भी मिलेगा,फिर चाहे चोरी अठन्नी की ही हो।सफेदपोश व मुखौटों वाले चोर यानि रावण किसी को नज़र नहीं आते ।वह तो अपनी दाल गलाने में लगे रहते हैं मतलब अपनी बुराई को ,अपनी बुरी भावना को नोटों के द्वारा अच्छाई का लिहाफ पहना लेते हैं ,और कहलाते हैं दीन दुखियों के राम !!
त्रेतायुग में दशरथ सुत श्रीराम ने अपनी अर्धांगिनी जनक पुत्री सीता मैया पर कुदृष्टि डालने एवं उनका अपहरण करके जघन्य अपराध करने वाले महाज्ञानी ,पण्डित एवं विद्वान लंकेश रावण को मार कर बुराई का नाश किया और अच्छाई को सिद्ध किया था। विभीषण द्वारा अपने भ्राता रावण के मृत्यु का रहस्य नाभि में तीर मारना श्रीराम के समक्ष बता देना क्या उचित था??और बदले में भगवान राम द्वारा उसे लंका का राजपाठ दिलवाना कहाँ तक तर्कसंगत था। सीता मैया का धरती में समा जाना ,यह क्या था।बाल्मीकि आश्रम में लवकुश का जन्म होना,अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा पकड़ना,पुत्रों का भगवान राम जोकि उनके पिता थे,के साथ युद्ध होना!!सब बिन्दु सोचने पर मजबूर करते हैं ।
यह तो अपनी-अपनी भक्ति एवं मर्यादा है कि कौन किसका पक्ष देता है ??न्याय अन्याय क्या है??जो इतिहास में लिख दिया गया ,वह सत्य है तो उसकी सत्यता का प्रतिशत कितना है ??जैसे आज राम रहीम
के समर्थक एवं उसके अनुयायी अभी तक यह मान नहीं रहे कि उनके बाबा भ्रष्ट हैं,उन्होनें अपने भक्तों की भावना से खिलवाड़ किया है ??जहाँ हम श्रीराम को अच्छाई ,सत्यता हेतु दशहरे पर पूजते हैं और रावण को जलाते हैं वहीं लंका में लोग रावण को पूजते हैं।
एक भेड़चाल सी बनी लगती है।जब हम भी छोटे थे,बाल्यावस्था में थे,सभी बच्चे पाँच पाँच दस रुपये एकत्र करते थे ।छोटा सा रावण बनाया जाता था।उसमें छोटे-छोटे पटाखे रख दिये जाते थे।तब भी दशहरा पर अवकाश होता था और आज भी ।अवकाश का आनंद वैसा ही है जैसा बचपन में होता था,फर्क यह है कि तब पढ़ते थे ,अब पढ़ाते हैं।खैर सारा दिन ज्यों नाशता करके छोटे से खुले मैदान में सब बच्चे आ जाते थे और दोपहर तक टेढा-मेढा रावण बन ही जाता था। फिर इंतजार रहता था,स्टैंडर्ड टाईम चार बजे का!!शायद इस चार बजे से इतना मोह क्यों है ,यह मोह आज भी बरकरार है।तब यह रावण जलाने का समय होता था और आज चाय की चुस्की लेने का।चार बजते ही होशियार बच्चा रावण को आग लगाता था और तेजी से पीछे भागते-भागते कई बार गिर भी जाता था।कुछ सैंकिड में धूँ-धूँ करके हम बच्चों का रावण तो जल जाता था मगर अमृतसर शहर के गोल बाग में बने बड़े से रावण के जलने पर पटाखों की विभिन्न ध्वनियाँ रात तक कानों में गूँजती रहती थी।बस यही पढा था और यही पढ़ाया था शिक्षकों ने कि सत्य की जीत हुई और झूठ की हार!रावण मरा,बुराई मरी!राम आये ,भलाई आई!!
!यह भारतीय संस्कृति ही है जो नैतिक मूल्यों को जीवंत रख रही है ।यह सभी उत्सव , पर्व संस्कृति के रक्षक हैं,पोषक हैं ।
आज जब सोचती हूँ तो कई सवाल उठते हैं मन में !
पारंपरिक संदर्भ में पर स्त्री पर कुदृष्टि डाली थी तो दशहरा पर्व बन गया।आज सामयिकता में यह लिव इन रिलेशनशिप नाम आ गया,इसको पूरा समर्थन मिला है।थर्ड जैंडर को कानूनी तौर पर मान्यता मिली ,गौरी राखी सावंत एक बेटी को गोद लेकर पाल रही हैं ।नारी शिक्षा व समानता कानून बने,बाल मजदूरी रोकने हेतु कार्य हो रहे,बाल विवाह ,विधवा विवाह ,पर्दा प्रथा,सती प्रथा,दहेथ प्रथा संबंधी धारणायें बदली हैं।फिर हम एक ही रावण को हर साल मारते हैं जलाते हैं,पर वह न तो मरता है न ही जलता है ,क्यों??अर्थ स्पष्ट है,हम सिर्फ श्रीराम का मुखौटा पहनते हैं और बनावटी रावण के पुतले को जलाते हैं।
असली रावण त्रेतायुग में मरा था तो पिर आज कलयुग में वह कैसे आ गया??
सोलह कला संपूर्ण तो शायद भगवान भी न हुये होंगें।फिर हरेक इन्सान में गुण-अवगुण तो निश्चित रूप से दिखेंगे ही !!आज विभिन्न रूपों में रावण उत्पन्न हो गया है ।देश में व्याप्त समस्याएं- --मँहगाई,बेरोजगारी ,भ्रष्टाचार ,रिश्वतखोरी भी रावण का ही रूप हैं जो हमें समाप्त करनी हैं ।हम सब चाहते हैं,इनसे निजात मिले !!पर बात फिर वही ..दूसरों के लिये मानवीय मूल्यों के भाषण है,लैक्चर हैं,खुद के अमल के लिये नहीं!!अपना कोई कार्य पूर्ण न हो रहा हो तो दिखाते हैं बाबुओं को दो हजार का नोट फटाफट!!हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो जाती है ,तब लगता है हमसे समझदार तो कोई है नहीं,बेवकूफ है दूसरा बंदा...पैसे नहीं दिये तो अब लगा रहा चक्कर दफ्तरों के !! मन का रावण मरता ही नहीं,क्या किया जाये??शार्टकट से जो आगे बढ़ना सबको,तो भाई मरेगा कैसे??दूसरों की टांग मत खींचो बल्कि अपनी टांग से छलांग जरा और बढ़ी लगा लो !!फिर राम बनोगो रामलीला में तो लोग जूते नहीं मारेंगे ,सलाम करेंगें!!आज वह देहधारी रावण के दस सिर ---भ्रष्ट नेता,वकील,अध्यापक,डाक्टर,दुकान दार, ढोंगी साधु व धर्म के ठेकेदार, न्यायधीश व पुलिस,फिल्मी जगत के लोग तथा आम जनता इत्यादि के रुप में अजगर की तरह फन फैलाकर घूम रहे हैं।
सौ प्रतिशत श्रीराम की भूमिका वही निभायेगा जिसकी चोरी पकड़ी नहीं जायेगी और जो पकड़ा गया वह रावण बनकर आग में धुआँ-धुआँ हो जायेगा।।कोई बड़ा रावण तो कोई छोटा रावण ,पर आज रावण सब के भीतर है,राम भी सबमें समाया हुआ है ,उसका अस्तित्व दब गया है --भोलाराम के जीव की तरह दफ्तरों की फाईलों में! रावण को मारें ,जलायें ,पर लंकेश रावण को नहीं ,अपने भीतर छिपे हुये रावण को ,ताकि एक स्वस्थ एवं स्वच्छ भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अमूल्य धरोहर भावी पीढ़ी को विरासत में दे सकें।अन्त में यही कहूँगी------
भीतर के रावण को जो,आग खुद लगायेंगे ।
सही मायनों में वे ही ,दशहरा मनायेंगे।।
छिप कर बैठा ये दानव ,आज हर एक दिल में
भड़काता वैर की आग, हँसते-खेलते घरों में,
कलुषित मनोवासना को ,जो सदा मिटायेंगे।
सही मायनों में वे ही ,दशहरा मनाएंगे....।
मन रावण फुंकार करे ,रक्त अपनों का बहे
मूली गाजर के जैसे ,मानव आज कट रहे
दया धर्म सद् भावों के,जो दीप जलायेंगे।
सही मायनों में वे ही ,दशहरा मनाएंगे....।
मनाता है रंगरलियां ,ये काँटे बिखेरकर
दिखाता झूठे पंख है ,ये सत्य समेटकर
चुनकर काँटे राहों के,जो फूल बिछायेंगे।।
सही मायनों में वे ही ,दशहरा मनाएंगे....।
धन-वैभव की इच्छा से, सराबोर रहता हर पल
बुद्धि ज्ञान को बिसराये, दुष्कर्म करे हरपल "पूर्णिमा"मरे जमीर को जो ,सचेत कर पायेंगे।
सही मायनों में वे ही ,दशहरा मनायेंगे....।
2)विजय दशमी:बलविंदर अत्री
राम लीलाओं का अंत
चरम सीमा पर था
भीड़ में था
अज़ब सा जोश
अज़ीब -सा शोर
पर
बारूद भरा होने के बावजूद
भीड़ के बीचों बीच
चुपचाप
लाचार असहाय खड़े थे
रावण कुंभकर्ण और मेघनाद
घमासान युद्ध जारी था
राम रावण का दहन करने को था
कि अचानक बिजली चमकी
बादल गरजे
और बरसे भी
भीड़
तीनों को अकेला छोड़
एक दूसरे को रोंद
भागने लगी
किसी आश्रय की तलाश में
पर मैं
चुपचाप निहारता रहा
वर्षा से भीगते
उनके भीतर के बारूद को-----
आप कहेगें
कि मैं न जाने क्या सोच रहा हूँ
अगर आप
उस वक़्त मेरी जगह होते
तो महसूस करते
कि यह महज़ बारिश नहीं थी
एक चेतावनी थी
क्योंकि बुराई का प्रतीक रावण
नहीं चाहता बार -बार मरना
अपने जैसे लोगों के हाथों
वैसे भी अब राम भक्त
रावण का सामना करने से कतराते हैं
तभी तो अब -दूर से ही
रिमोट कन्ट्रोल से रावण को जलाते हैं!!
3)क्योंकि हम राम न हुए: डॉ भावना तिवारी
सी-224,सेक्टर-19
नोएडा-201301
उत्तर प्रदेश
ईमेल - drbhavanatiwari@gmail.com
उन्नत उत्साह है चारों ओर
इस छोर से उस छोर
शोर ही शोर
चहुँओर
लगा रहे ज़ोर
माटी के पुतले
जला रहे खपच्चियों पर चढ़े
कागज़ से मढ़े
चमकीले विशाल पुतले।
अथाह आवाम।
क्या कहा
आओ जलाएँ
रावण।
करें पाप से पुण्य तक की यात्रा
करें बुराई से भलाई की ओर गमन।
राम को नमन।
पर इन क्रियाओं के पूर्व
करना है दहन
अंधकार गहन,
करना है हंकार का शमन।
मदांध मानसिक और दैहिक रावण का दमन।
सोचता है मन
भीतर के संताप
शाप
भला हो कि फलीभूत न हुए,
क्योंकि हमने नहीं कीं प्रार्थनाएँ निष्काम
हमने नहीं कीं कामनाएँ
सर्वहारा के हितार्थ।
क्योंकि हम राम न हुए।
तय न किये मानक,
किसी नौकरी के आवेदन की भाँति
ठहरते अयोग्य।
सारी आस्थाएँ हो जातीं तिरोहित,
झूठ करता तार-तार
हम खड़े होते लाचार।
हर बार रावण बचता
हम होते शर्मिन्दा
सोचते क्यों हैं
ज़िन्दा।
निष्काम
न लिया कभी राम का नाम।
हमने भीड़ के पीछे
दौड़ना सीखा
कभी न देखा
अंतस में
जल रहे राम
और अट्टहास करता रावण।
4)रावण महाज्ञानी :दीपक कुमार ,जालन्धर
दुष्टता का सूचक ,
खटकता सब की आँख में,
उस की अजब कहानी,
रावण था महाज्ञानी।
पूर्व जन्म में द्वारपाल जय विजय थे
शापित हो विष्णुलोक
से
पा लिए वर अपने स्वामी,
रावण ____।
दस जन्म में भक्त होकर मुक्ति ले लो
या तीन जन्म में शत्रु बन के मुक्त हो लो,
रावण ,कुम्भकरण बन के शत्रुता राम से मानी,
रावण _____।
शिव भक्ति से पा ली सोने की लंका,
काल को बाँध रखा था जिसने,
हुआ न अनजाने में अभिमानी,
रावण ______।
छः शास्त्रों का ज्ञानी ,चारों वेदों का ज्ञाता,
दशाशीश ने राम से लड़ने की ठानी।
रावण____।
ले आया सीता को छल से हाथ पकड़ के,
लंका में लाकर उसने न छू कर ,बना दी नई कहानी ,
रावण___।
चाहता तो मर जाता राम के हाथों वनवास में,
पर कुल को मुक्त करवाने ,
लंका ले आया राम को, जो थे परम ज्ञानी
रावण______।
मरवाया पुत्र को राम के हाथों,
कुम्भकरण को भेजा बाद में,
अंत में खुद पहुँचा शिव ध्यानी,
रावण था______।
मुक्त हो गया राम के हाथों मर कर,
अंत में राम ने लक्ष्मण को सीख दिलवाई सुहानी।
रावण था महाज्ञानी।
5)ਦੁਸਹਿਰਾ :,रघबीर सिंह सोहल,
प्रिंसीपल
साहिब हरगोबिन्द पब्लिक सी.सै.स्कूल,चुंग,अमृतसर
ਦੁਸਹਿਰੇ ਲਈ ਰਾਵਣ ਦਾ ਪੁਤਲਾ,
ਵਿੱਚ ਮੈਦਾਨ ਦੇ ਖੜਿਆ।
ਦਹਿਸਰ ਦਹਿਨ ਦੀ ਖਾਤਰ ਲੋਕਾਂ,
ਇੱਕ ਨੇਤਾ ਨੂੰ ਜਾ ਫੜ੍ਹਿਆ।
ਲੋਕੀਂ ਜਿਸਤੋਂ ਥਰ ਥਰ ਕੰਬਦੇ,
ਨਾ ਲਿਖਿਆ ਨਾ ਪੜ੍ਹਿਆ।
ਮਦਿਰਾ ਪੀਣ ਦਾ ਵਕਤ ਹੋਣ ਤੇ,
ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਕੁਝ ਅੜਿਆ।
ਛੇਤੀ, ਸਮੇਂ ਦੀ ਸਮਝ ਨਜ਼ਾਕਤ,
ਝੱਟ ਸਟੇਜ ਜਾ ਚੜ੍ਹਿਆ।
ਨਾਲ ਮਾਣ ਦੇ, ਤਾਣ ਕੇ ਛਾਤੀ,
ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਤਰਕਸ਼ ਫੜ੍ਹਿਆ।
ਐਸਾ ਚੱਲਿਆ, ਤੀਰ ਕਿ ਸਿੱਧਾ,
ਛਾਤੀ ਵਿੱਚ ਗਿਆ ਜੜਿਆ।
ਛੂੰਅ ਛੂੰਅ, ਠਾਹ ਠਾਹ, ਚਲੇ ਪਟਾਖੇ,
ਅੱਗ ਦੀ ਉੱਠੀਆਂ ਲਾਟਾ,
ਅਸਲੀ ਰਾਵਣ ਹੱਥੋਂ, ਨਕਲੀ,
ਧੂੰਅ, ਧੂੰਅ,, ਕਰਕੇ ਸੜਿਆ।
ਦੁਸਹਿਰੇ ਦੇ ਦਿਨ, ਦਹਿਸਰ ਦਹਿਨ ਦੀ,
ਕੋਈ ਪਿਰਤ ਨਵੀਂ ਹੀ ਪਾਈਏ।
ਸਦੀਆਂ ਪੁਰਾਣੇ, ਉਸ ਵੈਰ ਵਿਰੋਧ ਨੂੰ,
ਮਿੱਤਰੋ ,ਹੁਣ ਤਾਂ ਦਿਲੋਂ ਭੁਲਾਈਏ।
ਊਚ ਨੀਚ , ਜਾਤ ਪਾਤ ਦੀ ਨਫਰਤ,
ਜਾਂ ਫਿਰ, ਧਰਮਾਂ ਦੀਆਂ ਵੰਡੀਆਂ।
ਗਰੀਬੀ, ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ ਅਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ,
ਸੰਗ ਭੁੱਖ ਨੰਗ ਗਈਆਂ ਗੰਢੀਆਂ।
ਸਮਾਜ ਦੇ ਕੋਹੜ, ਸਭ ਬੁਰਿਆਈਆਂ ਦੇ,
ਦਸ ਵੱਡੇ ਵੱਡੇ ਬੁੱਤ ਬਣਾਈਏ।
ਫਿਰ ਧੁੰਨੀ ਵਿੱਚਾ ਸਿੱਧਾ ਤੀਰ ਮਾਰਕੇ,
ਇਹ ਦਹਿਸਰ ਸਾੜ ਮੁਕਾਈਏ।
6)गुण हैं जिसमें राम के,रावण जलाने का अधिकार उसे : राजबाला "राज"
ग्राम/पोस्ट -राजपुरा (सिसाय)
जिला-हिसार (हरियाणा)
मो.08569853471
गुण हैं जिसमें राम के,
रावण जलाने का अधिकार उसे
भरा है जो अवगुणों से,
पुतला फूंकने पर धिक्कार उसे
रावण को मारकर राम ने मिटाई थी बुराई
पूछो निज मन से तुम,खुद में कितनी हैअच्छाई
अहम् के वश होकर मत रह ,जान ले यह सच्चाई
तीन लोक का जो ज्ञानी था,ले डूबाअहंकार उसे ।
गुण हैं जिसमें राम के,
रावण जलाने का अधिकार उसे.....
पहनकर मुखौटा राम का,कैसे जानेगा तू यह मर्म
उस जैसा बनने के लिए,जीवन में करने पड़ते सद्कर्म,
कितनों के लिए तूने किया त्याग,
कितनों केजख्मों पर लगाए मरहम
परहित की जो न जाने परिभाषा,
समझ से परे लगता परोपकार उसे ।
गुण हैं जिसमें राम के,
रावण जलाने का अधिकार उसे .....
त्याग की मूर्ति थे दशरथ पुत्र,
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं
पर पीड़ा भी अपनी समझी,
शबरी के फल भी खाते हैं,
कैसे जलाएगा तू रावण को,
तुझको आती बनानी सिर्फ बातें हैं
स्वार्थ को त्याग ,मत भूल इंसानियत को,
हर पल पुकार उसे
गुण हैं जिसमें राम के,
रावण कहलाने का अधिकार उसे .....
अन्त में बस यह कहना है,
बसता जिसमें श्रेष्ठ इंसान है
रावण वही जलाए जो स्वयं राम है ।।
7)मैं रावण बोल रहा हूँ:सुशील शर्मा
राम और मैं रामायण के सबसे ऊर्जावान चरित्र हैं।भले ही मेरा चरित्र सबको नकारात्मक ऊर्जा से भरा लगता है और राम का चरित्र सकारात्मक ऊर्जा का पुंज।हम में से किसी ने भी एक दूसरे से व्यक्तिगत दुश्मनी नही की। हमारे बीच युद्ध की शुरुआत शूपर्णखा और लक्ष्मण के वाद विवाद के साथ शुरू हुई और इस महान युद्ध के उत्प्रेरक के रूप में फिर और कई बातें जुड़ती गई।हमारे बीच लड़ाई व्यक्तिगत से कहीं अधिक यह अस्तित्व और सम्मान की लड़ाई थी।
आप सब इस बात से सहमत होंगे कि मैं राम से ज्यादा विद्वान पारंगत और शक्तिशाली था । मैं राम से ज्यादा धनवान था।मेरे पास राम से ज्यादा साहस बुद्धि संकल्प विद्या राजनीतिक समझ थी।राम से बड़ा कुटुंब था शक्तिशाली सेना थी सीता के समान ही सती सावित्री मेरी पत्नी मंदोदरी थी लेकिन फिर भी मैं यह युद्ध हार गया।
आज आपको इस का मुख्य कारण बताता हूँ ।वो कारण था राम का चरित्रवान होना।
आपको शायद गलतफहमी हो कि मैंने सीता के सतीत्व को तोड़ने की कोशिश की लेकिन ऐसा नही है मैंने सिर्फ अपनी बहिन के अपमान का बदला लेने उनका अपहरण किया था।मुझे राम की शक्ति पर कोई संदेह नही था लेकिन मैं अपनी बहिन के अपमान को लेकर चुप भी नही बैठ सकता था। मैं माया का शिकार था। स्वर्ण नगरी लंका और तीनों लोकों के स्वामी होने का भ्रम था। सत्ता और सामर्थ्य अच्छे अच्छे ज्ञानी को मदांध बना देता है। मुझे एक राजा का फर्ज निभाना चाहिए था अपनी बहिन को समझाना चाहिए था किन्तु बहिन की कटी हुई नाक मुझे अंदर तक उद्वेलित कर गई और मैंने अपनी विनीत बहन के साथ खड़ा होने का फैसला किया, मैंने एक राजा की जगह एक भाई की भूमिका निभाई। मेरी न केवल एक राजा के रूप में विफलता थी, बल्कि बुराई की पहली सीढ़ी पर एक कदम भी। बुराई का दूसरा कदम मैंने तब उठाया जब अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के दौरान मैं अहंकारी बन गया।मैंने धर्म की भावना खो दी। क्रोध का गुलाम बन कर नीचे गिर गया और इस प्रक्रिया में मैंने कई पाप किए, इनमें से एक जटायु की हत्या थी।मुझे मालूम है और शास्त्रों में उल्लेख है कि आप की तुलना में अगर कोई कमजोर है तो उसे मारना "शक्ति का दुरुपयोग" है। इसलिए, हथियारहित, बच्चे, बूढ़े या जानवर और पक्षियों को मारना एक पाप है ।
मुझे मालूम है राम मुझे पसंद करते थे मेरा सम्मान भी करते थे।उन्होंने मुझ से शिवाभिषेक कराया लक्ष्मण को राजनीति की शिक्षा लेने भेजा।युद्ध के पहले और बाद में भी कई शांति प्रस्ताव भेजे किन्तु मेरा अहंकार मौत चुन चुका था। मुझे बुरा कहने के तो आपके पास कई कारण हैं लेकिन आप लोग तो राम को भी बुरा कहने से नही चूकते।
राम ने कभी सीता पर शक नहीं किया; अगर राम ने सीता पर संदेह किया होता तो, तो वह उन्हें अपने साथ अयोध्या क्यों लाये होते उन्हें वही छोड़ दिया होता। यहाँ पर बात राजधर्म निभाने की है।राजा होने के नाते, राम को अपनी निजी भावनाओं को पीछे छोड़कर लोगों द्वारा कसौटी पर खरा उतरना था।
एक महिला एक सबसे बड़ी ताकत बन सकती है; और वही एक आदमी की सबसे बड़ी कमजोरी हो सकती है अयोध्या के लोग यह जानना चाहते थे कि उनकी रानी ने राजा को धोखा दिया था या नहीं, प्रजा यह जांचने की कोशिश कर रही थी कि क्या रानी राजा की ताकत है या कमजोरी। राम ने चीजों से पलायन करने के स्थान पर चीजों को सही साबित करने की चुनौती को स्वीकार किया।राम जानते थे कि प्रजा को यह समझने का अधिकार है कि क्या वे सही राजा के हाथों में थे या नही या उनके प्रति राजा उत्तरदायी है या नही।
सीता की अग्नि परीक्षा एक प्रतीकात्मक संदेश था कि राजधर्म से ऊपर कोई भी नही है भले वह स्वयं राजा क्यों न हो।
भारत के वर्तमान संदर्भों की चर्चा करना शायद सबसे ज्यादा प्रासंगिक है।आप सभी मुझे बुरा कहते हो क्या कभी अपनी आत्मा में आप लोंगो ने झांका है।आप लोगों के अस्तित्व की विसंगतियों की तुलना की जाए तो मैं बहुत पाक साफ नजर आऊंगा। मैंने तो अपने आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ी भले ही आप लोग उसे गलत कहें आप लोग तो सरे आम आत्मसम्मान को बेंच देते है।चंद टुकड़ों में अपने देश की इज्जत आबरू दुश्मन को बेच रहें है।
मैंने कभी भी राजनीति में भावनाओं को स्थान नही दिया अपने निर्णय स्वयं लिए हैं लेकिन आज राजनीति के निर्णय सिर्फ वोट बैंक के आधार पर होते हैं।
मेरे राज्य में चारों ओर स्वर्ण साम्राज्य था कोई भूखा नही था ।आज भूख कुपोषण चारो ओर फैला है।
मैंने सीता का अपहरण सिर्फ़ बहिन का बदला लेने के लिए किया था और सिर्फ डराया धमकाया था।कभी भी छूने की कोशिश नही की।आज सरे राह पांच साल की बेटियों का बलात्कार किया जा रहा है।तब बताइए रावण श्रेष्ठ है या आज का मानव।
मैंने सीता का अपहरण सिर्फ़ बहिन का बदला लेने के लिए किया था और सिर्फ डराया धमकाया था।कभी भी छूने की कोशिश नही की।आज सरे राह पांच साल की बेटियों का बलात्कार किया जा रहा है।तब बताइए रावण श्रेष्ठ है या आज का मानव।
मैंने तो अपने देश और समाज के लिए अपने कुल को भी कुर्बान कर दिया।अपने देश पर आक्रमण करने वाले से अंतिम समय तक लड़ा और आप लोग क्या कर रहे है।शत्रुदेश के आतंकियों को पनाह दे रहे है।अपनी देश के लिए मैं सपरिवार कुर्बान हो गया क्या आप की सोच अपने देश के प्रति ऐसी है।जिस दिन ये सोच हो जाये तब तुम मुझे बुरा कहने के हकदार हो।
मैं चाहता तो राम को सीता लौटा कर क्षमा मांग कर स्वर्ग पा सकता था किंतु मैंने अपने स्वाभिमान जिसे आप लोग मेरा अभिमान कहते हो से समझौता नही किया और साक्षात ईश्वर से भी लड़ बैठा।क्या आप के अंदर इतना साहस है।जिस दिन इतना साहस आ जाये तो मुझे बुरा कहने के हकदार हो।
नवदुर्गा मैं कन्याओं को पूजते हो और भ्रूण में ही उनकी हत्या कर देते हो,सड़कों पर लावारिस छोड़ देते हो उनसे बलात्कार करते हो और फिर भी मुझे जलाते हो।क्या आप लोगों को हक़ है इसका।
मुझे बुराइयों अहंकार पाप और न जाने किन किन गालियों से आप लोग नवाजते हो,अपने गिरहवान में झांक कर देखना उसमें कई रावण एक साथ दिखेंगे।
हर साल आप सभी मुझे अहंकार, बुराई, क्रोध, आवेग आदि के विनाश के प्रतीक के रूप में जलाते हैं। मुझे दशहरा पर बुराई के अंत और भलाई की विजय के संकेत के रूप जलाया जाता है।ताकि आप सब ये सबक सीख सकें कि आप कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों आप अगर दुराचरण करेंगे तो आपका पतन निश्चित है।
आप सबको विजयादशमी की शुभकामनाएं।
8)दशहरा:कल्पना मनोरमा
दशहरा,इसका क्या
ये तो आता-जाता रहेगा सालों साल
बिना रुके
आगे भी कई सालों तक
पीटी जाती रहेगी
पीढ़ी दर पीढ़ी बिना रुके
परंपरा की लकीर
लीक से हटकर कुछ भी करना
हो सकता है जोख़िम भरा
इसमें लगानी पड़ती है
पूरी ताकत
छोड़ने पड़ते हैं कई
सुर्ख़ डर तड़पते हुए
यदि लगा दी अपनी ताकत
लीक तोड़ने में
नया कुछ रचने में
तो दिनभर का खाया-पिया
पचायेगा कौन
आज़कल सुबह का खाया
रात तक पचाने में
पड़ता है राम से काम
इसीलिए
राम के साथ खड़ा किया जाता है
एक और धनुषधारी
मुहूर्त साधने हेतु
निशाना लगना जरूरी है
चाहे बाण हो किसी का भी
परवाह नहीं
रावण भी
ढह जाता है कुछ सोचकर
चुपचाप ,उसके यहाँ भी
चीत्कार करने की है
सख़्त मनाही
रावण भी जानता है
स्वाभिमान की ठेस होती है
बहुत ख़तरनाक
चिल्लाने से क्या मिलेगा
सिवाय जग हँसाई के
वो भी चुपचाप मर जाता है
और दूसरे दिन से ही
पुनः उठाने लगता है सिर
कुनबे के साथ
बिल्कुल नए रूप में
सोचना तो राम को होगा
क्या वे , रह पाएंगे
सर्वशक्तिमान
अगले दशहरे तक
9)शायद रावण नही मरेगा :
सुशीला जोशी
948/ 3, योगेन्द्रपुरी
रामपुरम गेट ,मुजफ्फरनगर 251001
त्रेता युग तो बीत गया
रावण अब भी जीवित है
काम क्रोध मद लोभ रूप
हर मन में वह जीवित है ।
कागज बाँस के पुतलों पर
लाखों खर्च किये जाते
लेकिन मन की वृत्ति को
अंकुश लगा नही पाते ।
रावण ने हर ली सीता
पर स्पर्श तक नही किया
ये उसका ही संयम था
लंका में सुरक्षित रही सिया ।
आज तिरस्कृत है हर सीता
सड़कों और चौराहों में
नही सुरक्षित बेटी भी अब
निज बाबुल की बाहों में ।
शायद रावण नही मरेगा
क्योंकि कोई राम नही है
व्यभिचार और बलात्कार सा
अन्य कोई काम नही है ।
रावण को फूकेगा वो ही
जिसमें राम सा कौशल होगा
राजनीति और कूटनीति का
जिसमें अद्भुत संगम होगा ।
10)रावण अभी जिन्दा है: बृजेश अग्निहोत्री "पेंटर
निवासी ग्राम-खरौली
क्षणिकाएँ
जीवन के मूल्य
कुछ
ऐसे खो गए
कि
रावण
राम न हुए
राम
रावण हो गए।
स्वर्णिम
लंका की जगमग से
अयोध्या शर्मिंदा है
कब आओगे राम
रावण अभी जिन्दा है।
दशहरे
की बधाई देने
परदेश से लौटे ।
सीने लगकर
मिलनें लगे
मुखौटे ।
11)और रावण जल उठा: डाॅ.सुमन सचदेवा,मलोट,मुक्तसर
दशहरे के त्योहार वाले दिन रामलीला ग्राउंड में रावण,कुंभकरण एवं मेघनाद के तीन विशाल बुत खड़े थे । अभी कुछ ही देर में शहर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा उन बुतों को आग लगाने की रस्म अदा होनी थी। शहर के कुछ अन्य गणमान्यों द्वारा भाषण दिए गये जिनमें रावण की बुराइयों व श्रीरामचन्द्र जी के सच्चरित्र का बखान किया गया। तत्पश्चात् जनता की तालियों के बीच नेता जी रावण के बुत को अग्नि देने के लिए उठे।
ज्यों ही आग लगाने के लिए उनका हाथ आगे बढा तो बुत से आवाज़ आई--" ठहरो ! तुम कौन होते हो मुझे जलाने वाले ? मैने तो केवल एक गुनाह किया था सीता का अपहरण करने का,मगर मैने अपनी मर्यादा को कभी नही लांघा और मेरी लंका में सीता पवित्र ही रही । मैने जीवन भर और कोई गुनाह नही किया । तुम अपने चरित्र में झूठ,फरेब ,कपट, ईर्ष्या, अश्लीलता,क्रूरता आदि लाख बुराइयां लेकर मुझ एक बुराई को जलाने चले हो। मेरे दस मुख बाहर तो थे ,मगर तुम इस उज्ज्वल चेहरे की ओट में कितने घिनौने चेहरे छुपा कर बैठे हो ,वो बाहर लाओ और फिर मुझे जलाओ । क्या हो तुम मर्यादा पुरुषोत्तम राम ? तो लो मेरे दस सिर उपस्थित हैं । "
नेता जी के आगे बढे हुए हाथ कांपते हुए वापस मुड चुके थे और वह उस बुत को आग लगाने का साहस नही कर पाए । आत्मग्लानि के कारण अब उनके अंदर का रावण धू - धू कर जलने लगा था ।
12)हे रावण तुम बुरे थे : अँजना बाजपेई
जगदलपुर (बस्तर )
छत्तीसगढ़
हे रावण तुम बुरे थे
बहुत बुरे थे
फिर भी आज के रावणों से कुछ कम थे.....
महापराक्रमी ,महावीर
तुम्हें जलाते हर वर्ष हम
हे दशानन आप
प्रकांड पंडित ,परम शिवभक्त
शिव तांडव स्रोत के सृजन हार वेदो के ज्ञाता ,
सब कुछ थे आप ,,
हे शूर्पनखा के भ्राता
आपने बहन के अपमान का बदला लिया
मर्यादा पुरषोत्तम
राम की पत्नी का अपहरण किया ....
आपकी गलती छुप ना सकी
आपने जो किया गलत किया ,
गलती की सजा आपको मिली
आप अपने अहंकार में
में डूबे रहे ,मृत्यु का वरण किया...
श्रेष्ठ वीणावादन करते रहे
पर मर्यादा का पालन
न कर सके,,,,
तुमने मिथ्याचरण किया
ऋषि का रूप लेकर
छल किया ,,
सजा मिली जब विभीषण
ने ही भाई होकर
भी राम का साथ दिया ,,,
तुम क्यूँ उदास हो
कर्मानुसार फल ही तो
तुमने प्राप्त किया ,,,
न पूछिये मन में ,
विचारो का मंथन चल रहा है
एक दर्द है जो मन में
पल रहा है ...
मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने
मेरा वध किया वो इसके
अधिकारी थे ,,,
पर जो मुझे जला रहे है
मुझ से भी बड़े अत्याचारी है ,
परम रावण आज रावण को जला रहे है
और श्री राम जी का उपहास बना रहे है ....
महा अहंकारी है जो यहाँ
सर्वेसर्वा बन बैठे है ,,
रोज विरोधियों पर झूठे सच्चे आरोपों के बाण चलाते है वे अपनी कुंडली
कहो कब बांचते है...
साधु ऋषि का भेष रखे
सब प्रवचन बताते है
यह किस मर्यादा का
पालन करते कौन सा धर्म
चलाते है....
नारी का सम्मान नही ,
बच्चों की सुरक्षित जान नही,
यहाँ सबमें रावण रहता है ,
इनके अंदर का रावण
कहो किस दशहरे में जलता है ,,,
कहो यहाँ राम किसके मन में पलता है ...
13)रावण मिलते हैं गली गली :डॉ. सुषमा सिंह
पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष और प्राचार्य, आर. बी. एस. कॉलेज, आगरा।
रावण तो मिलते हैं गली-गली
पर राम नहीं मिलते
जो खड़े हों अन्याय के विरुद्ध
करें बुराई का सर्वनाश
जो करें मर्यादा का पालन
और स्थापित करें सुचारु शासन।
कोई अर्थ नहीं
रावण का पुतला जलाने में
जब तक व्यक्ति न मार सके
अपने भीतर के अन्यायी को,
अत्याचारी को
और न बसा सके
अपने अन्दर मर्यादा के राम को।
14)क्या वास्तव में रावण राक्षस था:अनीला बत्रा,जालंधर
राक्षस की परिभाषा क्या है?
वह जो असत्य का साथ दे
वह जो सदभाव का त्याग करे
वह जो स्वयं से ही प्यार करे
जो निज आत्मा का वध करे,
कहा जाता है वह राक्षस है।
पर स्त्री का उसने हरण किया
माना कि छल का साथ दिया
पर सीता की इच्छा के विरुद्ध
कभी न उनका दामन पकड़
चरित्र को कलंकित किया।
आज कौन है उनके सरीखा,
जो वचन अपने पर दृढ़ रहे
आज तो हर जगह पर दानव
कितनी निर्भया को रौंद रहे।
राम राज्य की क्या बात करें
कितने पापी स्वतंत्र घूम रहे,
कई वेश साधुओं का बनाकर
मासूम हृदयों को रौंद रहे।
राम तो न जाने कहाँ खो गए,
आज तो इंसानों की बस्ती में
रावण भी मुझे सच्चरित्र लगे।
15)कोई राम नहीं है:संगीता पाठक
मानव की क्या सही पहचान है।
कौन सही कौन बना भगवान है।।
परनिदां,किसी को बुरा कहना मानव का एक सहज गुण है।वह यह भूल जाता है कि उससे अधिक अवगुण वह स्वंय में रखता है।लेकिन फिर भी...
रावण,रामचरित्र मानस का एक पात्र प्रकांड़ पंडित सैकडों हजा़रों कोटि कोटि गुणों की खान थी।अगर भविष्य वाणी न होती तो वह धनुष टोड़ने की सामर्थ्य भी रखता था।सीता को प्राप्त करना उसकी इच्छा, जुनून जो बाद में एब बन गया।हजार गुणों के बाद भी एक अवगुण ने रावण नाम को एक बुराई का प्रतीक बना दिया।तो आज कौन मन मानव ऐसा है जो बुराइयों से दूर है।
दैहिक भौतिक मानसिक अवगुणों की खान है मानव।रावण एक सफल भाई था।सीताहरण के बाद भी तिनके की ओट में वार्तालाप उसके चरित्र को जहाँ बिठाते है।वह अवर्णिय है।केवल एक बुराई(अहंकार)
उसके विनाश का कारण बनी।जो काम,क्रोध,मोह,लोभ,से जकडा़ था।आज कोई मानव इन दोषों से दूर नहीं है।कोई राम नहीं है।
अगर जला सको तो इन्हें जलाओं।
16)रावण- दहन का हक: डॉ चन्द्रा सायता इंदौर
राम रावण हैं
सम प्रथमाक्षर नाम
कृष्ण कंस भी
भिन्न वृत्ति और काम ।
समाज एक रहा
राम-कर्म मर्यादित
लंकाधिपति थे
विद्वान, पर विवादित।
दिव्यगुणी राम
पुरुषोत्तम जग कहाए
विकारी रावण
राक्षस- कुल में जाये।
लंका विजय कर
सिया को संग लाये
अयोध्या संवरी
राज्याभिषेक दिन आए।
लंकेश देहांत
दशमी दशहरा मने
विजया दशमी ही
जन मध्य रावण जले।
प्रश्न क्यों मौन
आज हमारे मन में?
क्यों कम आंकते
खुद को रावणपन में?
रावण- दहन हक
किसको? ना रहे भ्रम
जो सदगुणी हो
या छोड़ दे स्व- अहम।
आज कलयुग है
हर इंसा राम - रावण
का सम्मिश्रण है
बन सकता है पावन।
दशहरा तो है
आत्म- मंथन का दिन
रामत्व जगाएं
जले रावण प्रतिदिन।
17)विजयदशमी आई है: वीपी ठाकुर, हिमाचल प्रदेश
अच्छाई के रथ पर सवार होकर,
विजयदशमी आई है,
अच्छाई बुराई को रौंदने आई है,
सुहाने परिवेश में पसरी ,
बुराई को मिटाने आई है,
अच्छाई की बुराई पर जीत,
हमें यह बताने आई है,
लेकिन,
क्या हम आत्मसात करते हैं?
अच्छाई,
यह विचारने की नसीहत देने है ,आई,
महज औपचारिकता से ,
नहीं मिटेगी बुराई,
आत्मसात कर लो अच्छाई,
यह बताने है ,आई,
रावण की लंका जलाने,
राम नाम का प्रकाश फैलाने,
आई है,
विजयदशमी!
18)रावण जन्मा धरती पे : रूबी प्रसाद , सिलीगुड़ी
वही रावण जलाये जो स्वयं राम हैं ।
कर्म व आज्ञापालन जिसकी पहचान है ।।
हर किसी के अंदर बस रहा है एक रावण ।
कलयुग या सत्युग दुष्टता का कब विराम है ।।
पराई नार सीता थी उठा ले आया लंका में ।
है पुरुष कर लेगा हासिल डूबा इस शंका में ।।
पराई नार पर कुदृष्टि गृहलक्ष्मी का अपमान ।
कर्मों का फल,हुआ विनाश,विद्वता की डंका में ।। ....
ईर्ष्या, द्वेष व कलह फैल रहा हे माँ धरती पे ।
देख बेटी बहुएं जल रही दहेज की अर्थी पे ।।
अब तो आँखें खोलो कब तक सोयी रहेगी तू ।
राम मर रहा सबके अन्दर रावण जन्मा धरती पे ।।....
19)आभा सिंह
लघुकथा--दृष्टिकोण
शहर के प्रमुख अखबार का सर्वे चल रहा था। रावण मंडियों में घूमते पत्रकार अवलोकन करते, तरह-तरह के सवाल पूछते, फोटो खींचते विषय की जानकारी ले रहे थे । उन्होंने पाया कि पूरे शहर में जगह- जगह रावण मंडी सजी हुई थीं। लेटे- खड़े- पड़े ,रंग-बिरंगे, विशाल ,मध्यम, छोटे , बेबी रावण, खम्भों के सहारे ग्राहक का इंतज़ार करते, सड़क के किनारे लुढ़के । मस्त अंदाज थे इनके। दस सिर तो नहीं थे पर हाथ में तलवार और ढाल थी।
पत्रकारों को खोज रोचक लग रही थी। जब तक वे इन मंडियों में नहीं गये थे तब तक इन बातों का आभास तक न था। शाम ढलने लगी। काम पूरा हो गया था। वे आपस में बतियाने लगे।
' यार, शहर में हर साल इतने रावण जलते हैं पर बुराई तो दूर नहीं होती।'
' कैसे होगी , राक्षसों की कमी है क्या , बाबा, नीम- हकीम , भोपे .....और भी ढके-छुपे ढेरों हैं...औरत- मर्द सभी .... ।' दूसरा रोष में था।
' ठीक कहते हो , मंडी में बिकते ये रावण दिखाई तो देते हैं पर असली तो सज्जनता के खोल में छुपे पहचाने भी नहीं जाते।' महिला पत्रकार ने अपना मत पेश किया।
रावण बनाने वाला कारीगर बड़े ध्यान से सारी बातें ध्यान से सुन रहा था पर क्या समझ रहा था यह तो वही जाने। एक पत्रकार जो उसका इंटरव्यू ले चुका था, बोला ' क्यों भैया, अब तुम इस पर क्या कहोगे ?'
कारीगर मुस्कराने की कोशिश करता बोला ' अब हम का बोलें सरकार ,जादा तो जानत नाहीं पर ई रावण हमार भगवान है, हमार रोज़ी- रोटी । ई जलिहै तबहूं हमका रोटी मिलिहै । '
20)कलयुग में ज़िंदा रावण का वज़ूद:विनोद सागर
मेले में रावण के पुतले को जलाकर
अपने घर लौटने के बाद जैसे ही
मैं कमरे में दाख़िल हुआ ही था कि
रावण के अट्टहास सुनकर मेरे तो
दोनों कान खड़े हो गएँ भय से...
वो बोला-‘‘क्यों मेरे योद्धा! जला आए
तुम मुझको रामलीला के ज़ुलूस में...?’’
मेरे योद्धा’ शब्द सुनकर मैं चकराया
साथ ही रावण को ज़िंदा देखकर
मैं भयभीत हो अंदर ही अंदर घबराया
पूछा-‘‘तुम ‘ज़िंदा हो अभी तक...?
और मैं तुम्हारा योद्धा हूँ, तो कैसे?’’
सुनकर रावण पहले तो मुसकाया
फिर बात को उसने आगे बढ़ाया
बोला-‘‘जिस प्रकार से पाँच तत्त्वों से
होता है निर्मित मानव का यह शरीर
ठीक उसी प्रकार मानव के पाँच अवगुण
काम, क्रोध, मद, लोभ और ईष्र्या’
एक साथ मिलकर बनाते हैं मुझ रावण को
और इन पाँच दोषों से तुम भी तो परे नहीं,
इसलिए तुम रामभक्त नहीं, मेरे योद्धा हो
और जब तक मनुष्य के विचारों में यहाँ
ये पाँच अवगुण विचरण करते रहेंगे
तब तक मुझको कोई नहीं मार सकता।’’
मैंने उत्सुकतावश रावण से पुनः पूछा-
‘फिर मुझसे ख़ुद को फूँकवाने का प्रयोजन?’’
रावण पुनः ज़ोरदार ठहाके लगाकर बोला-
‘‘शायद तुम्हें मालूम नहीं कि मेरा ही कुंभकरण
इस कलयुग में राम की भूमिका अदा कर रहा,
त्रेता में तो वह मात्र छह महीने ही सोता था
आज मगर, वह कलयुग में सालों भर सो रहा।
बस हमारी चाल की भनक किसी को न हो,
इसलिए वो अपने योद्धाओं को रामभक्त बनवाकर
पहले उनलोगों से रावण का पुतला बनवाता है,
और फिर एक साज़िश की तहत वह राम बनकर
देश के कोने-कोने में रावण के पुतले जलाता है।
फिर उसके बाद जीव-जन्तुओं की बलि दिलवाकर,
रावण के मरने का ज़श्न भी उन्हीं से मनवाता है।
तभी मैं कहता हूँ कि कलयुग में रावण अमर है,
क्योंकि त्रेता के राम ने मेरे भाई विभीषण को
अपने साथ मिलाकर मेरे तन का नाश किया था,
वहीं आज हमने उसके भक्तों को अपने साथ मिलाकर
कर रहा वध राम के तन और मन दोनों का,
ताकि रहे कलयुग में ‘ज़िंदा रावण’ का वज़ूद।
संकलित एवं संपादित
डॉ.पूर्णिमा राय,
शिक्षिका,लेखिका,संपादिका
अमृतसर( पंजाब)
इस विशेषांक संबंधी आपके विचार एवं सुझावों का सदैव स्वागत है!!
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