साझा संग्रह-1 गुरुमुखी देे वारिस हिंदी काव्य मंच
गुरुमुखी देे वारिस पंजाबी साहित्य वैल्फेयर सोसायटी (रजि.), पंजाब के सौजन्य से
"गुरुमुखी देे वारिस हिंदी काव्य मंच
में सम्मिलित रचनाकारों एवं लेखकों का
साझा संग्रह-1
1*गज़ल (अमित, कादियां)
2*अकेलापन (बलबीर कौर सैनी)
3*मेरा खुदा(प्रभजोत कौर, मोहाली)
4* देशभक्तों एवं देशभक्ति को समर्पित (गीत)
(डॉ.पूर्णिमा राय)
5*मेरी माता की गोद (लवप्रीत सिंह)
6* अच्छा मित्र( लवप्रीत सिंह)
7* ॲंधेरी रात और परी(डॉ.दीपक)
8*हमारी मेहनतों का सिला(डॉ.नीलू शर्मा)
9* ढूंढता हूँ.....!!(मुक्ता शर्मा त्रिपाठी)
10*तुम्हारे जाने के बाद(उपेन्द्र यादव)
11* नोट(अनवर हुसैन)
12* ज़िंदादिली....(बलबीर कौर सैनी)
13*हौंसला(सतिंदरजीत कौर)
14*अब,बहुत याद आते हो तुम (डॉ संजय चौहान 15*जब से गई हो तुम(डॉ.सोनिया शर्मा )
1*गज़ल (अमित, कादियां)
खुशियों से गूंजते हुए दालान छोटे हो रहे।
हैं मकान आलीशान पर इंसान छोटे हो रहे।
चक्करी बना के रख दिया पैसे ने है इंसान को
मोह,ममता,चैन-सुख,इत्मीनान छोटे हो रहे।
कानों को हाथ लग रहे सुन कारनामे बशर के
लगे इन के आगे आज तो हैवान छोटे हो रहे।
हर चीज़ मोल बिक रही मुंहमांगे दाम आजकल
डिग्रियां बड़ी हैं हो रही पर ज्ञान छोटे हो रहे।
सैंकड़ों मजहब बना लिए,हजारों रंग,जातियां
सार सब ही ग्रंथों के हैं महान छोटे हो रहे।
रूहों का प्यार गुम गया जिस्मों की हवस भूख में
जो प्यार में अपनी लुटा गए जान छोटे हो रहे।
क्या अजब जादूगरी है इस सियासत खेल में
कुर्सी पे बैठते ही वादे,बयान छोटे हो रहे।
आए समझ न नाम दूं क्या इस भयानक दौर को
अमित के सब सोचे हुए उन्वान छोटे हो रहे।
2*अकेलापन (बलबीर कौर सैनी)
आज कल हर आदमी खुद से खफ़ा है
दूर अपने आप से ही भागता है
कर लिया है कैद खुद को दायरे में
यूँ लगे खुद के सवालों से घिरा है
तोड़ डाले है सभी नायाब रिश्ते
सर चढ़ा बस कामयाबी का नशा है
खोजता है दर ब दर भगवान को वो
पर कभी ना मन के भीतर झाँकता है
बढ़ रही हैं दूरियाँ दिल से दिलों की
पास बैठे हैं मगर इक फासला है
रात दिन इक दौड़ सी सब को लगी पर
है कहाँ मंज़िल यहाँ किसको पता है
ज़िन्दगी की दौड़ में सब हैं अकेले
ये अकेलापन सभी को खा रहा है
3*मेरा खुदा(प्रभजोत कौर, मोहाली)
आजकल मेरा खुदा
मुझे आजमाता बहुत है।
दर्द दे कर मुझे
मुस्कुराता बहुत है।
जानता है हस्ती नही
कोई उसके बिन मेरी
फिर भी हर साँस के साथ
मुझे सताता बहुत है।
मुरीद हैं सभी उसके
ये जमाने वाले
बनाकर मुझे ही "बुल्ला "
वो नचाता बहुत है।
मेरा खुदा इस कद्र मुझ पर
प्यार लुटाता बहुत है
4* देशभक्तों एवं देशभक्ति को समर्पित (गीत)(डॉ.पूर्णिमा राय)
जकड़ी हुयी जंजीर में माँ कर रही फरियाद है।
देशभक्तों के ही दम पर देश दिखे आबाद है।।
हो रही है आवाज ऊँची पश्चिमी परिवेश की
दास्ताँ कैसे सुनाऊँ मैं अपने भारत देश की
हो गया आज़ाद भारत टुकड़ों में बंटता मगर
मुश्किलें बढ़ने लगी आता नहीं कोई हल नज़र
दूर जब अपने हुये थे आज भी वह दिन याद है।।
जकड़ी हुई जंजीर में माँ,कर रही फरियाद है।
देशभक्तों के ही दम पर देश दिखे आबाद है।।
गोरे हाकिम काले शासक अस्मिता को लूटते
देश के गद्दार बिन रिश्वत दिये ही हैं छूटते
मरते हैं नित भोले बच्चे खो गई इंसानियत
खून मैया का खौलता है देखकर हैवानियत
"पूर्णिमा "रूहें सिसकती काया महज आज़ाद है
जकड़ी हुई जंजीर में माँ कर रही फरियाद है।
देशभक्तों के ही दम पर देश दिखे आबाद है।।
5*मेरी माता की गोद (लवप्रीत सिंह)
स्वर्ग मुझे मिलता है,
मेरी माता की गोद में।
वो लड़ाती लाड होकर निस्वार्थ है,
खुद भूख से मरती है।
वो मेरा पेट तो भरती है,
जग जननी वह कहलाती है।
खुद के सपने मार के,
माँ मेरे सपने साकार बनाती है।
करू दुवा भगवान से,
माँ रहे मुक्त हर रोग से।
बहुत अच्छा लगता है ,
जब ममता माँ लौटाती है,
बचाती मुझे सदैव हर रोग से,
स्वर्ग मुझे मिलता है।
मेरी माता की गोद में
6* अच्छा मित्र( लवप्रीत सिंह)
समाज में विचरते सब से बड़ी कठिनाई
मित्र ढूँढना ऐसा जैसे हो अपना भाई
रूप-रंग उसका देख कर
मत मित्रता करना,
सूरत नहीं बल्कि
उसकी सीरत पर ही मरना।
जो रोके बुरे कामों से,
वहीं सच्चा मित्र,
समझ य़ह जाना।
जो बढावा दे गलत कामों में,
ऐसे मित्र से संभल जाना।
बुरी संगत का जो साथ कराए,
रखना उससे सदैव दूरी ,
सच्चा मित्र वही जो दूर करे
तुम्हारी हर मजबूरी।
समाज मे विचरते सब से बड़ी कठिनाई।
मित्र ढूँढना ऐसा जैसे हो अपना भाई।
नाम.लवप्रीत सिंह
7* ॲंधेरी रात और परी(डॉ.दीपक)
थी श्वेत वस्त्रों में परी समक्ष मेरे,
अंधेरी रात्रि में आभा विशिष्ट थी,
थी नयनों में भी कांति थे पाँच बाण छोड़े,
मन और हृदय की यूँ हालत शिकस्त थी,
उस दिव्य मूर्ति ने छोड़ा प्रभाव ऐसा,
संपूर्ण समर्पण भाव से बैठा वह शिष्ट था,
वह देव तुल्य मानव सुध था जो अपनी भूला,
परी बाण के प्रहार से पा रहा कष्ट था,
वह जानता था यह भी वियोग तय है लेकिन, समझाए कैसे मन को जो अस्त-व्यस्त था,
अब स्वप्न में भी दिखती उसकी ही छवि प्रतिपल, वह जान अब गया यह कुछ तो विचित्र था!
उसके हृदय में पनपी इक और थी जन्मेच्छा,
यादों में जब वह खोया फिर आश्वस्त था,
विधि ने भी कर दिया था उनका मिलन तो तय था, परी भी यह जानती थी इस जन्म कष्ट था।
8*हमारी मेहनतों का सिला(डॉ.नीलू शर्मा)
हमारी महेनतों का सिला मिलेगा ज़रूर,
पर रहना सदा वीतराग बन,
मोह न रखना कभी किसी से,
क्योंकि निर्मोही ही कुरुक्षेत्र का युध्द जीते थे
और जीतते रहेंगें।
बस प्रेम से ही करना अपने कर्म
और अभिमान न करना,
पर रखना एतबार ऐ हज़ूर !
कि कर्म किया है तो फल भी मिलेगा ज़रूर
9* ढूंढता हूँ.....!!(मुक्ता शर्मा त्रिपाठी)
हर नुक्कड़ हर गली, काम ढूंढता हूँ।
मजदूरी का सही, दाम ढूंढता हूँ।
संग दिल दुनिया का सताया हुआ, मैं
मुसाफिर, बस दिन की शाम ढूंढता हूँ।
अस्तित्व संज्ञा मेरी, अंतिम साँस पर,
आत्मा संतुष्ट, वही धाम ढूंढता हूँ।
दुश्मन हर कदम, घात लगाए बैठे,
तेरे प्यार का पैगाम ढूंढता हूँ।
कभी साजन भी खुद आन मिलें मुझसे,
मैं गरीब ऐसा मुकाम ढूंढता हूँ।
नासमझी मेरी, तो जग जानता है,
तेरी कृपा का परिणाम ढूंढता हूँ।
अनगिनत पाश में बंधा हुआ प्यासा,
अभी इसी साँस में, राम ढूंढता हूँ।
10*तुम्हारे जाने के बाद(उपेन्द्र यादव)
तुम्हारे जाने के बाद भी
ये सृष्टि चल रही है
तुम्हें तो गुमान था
कि सब खत्म हो जाएगा
चारों तरफ अन्धेरा छा जाएगा
पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
सिकन्दर, सीजर, नेपोलियन
कितने आए चले गये
सुकरात, होमर, मार्क्स
सबको लोगों ने भूला दिया
न्यूटन, डार्विन, एडिशन,
सब दफ्न हैं इसी मिट्टी में
शेक्सपीयर, मिल्टन, गेटे
गोर्की, वर्ड्सवर्थ, टॉल्सटॉय
न आए होते इस जहां में
तो भी ये दुनिया
वैसे ही चल रही होती
जैसे आज चल रही है
बिना रूके अबाध सी
ये किसी के लिए नहीं रूकती
जो लोग खुद को स्वयंभू
मसीहा मान बैठते हैं
दरअसल वो भूल करते हैं
इन्सानी शरीर में कोई
स्थायी 'खुदा' नहीं होता।
क्योंकि हाड़-मांस के पुतले
अपने मसीहत्व को
ज्यादा दिन तक
टिकाकर नहीं रख पाते
जो रख पाते हैं, वो फिर
इस जहां के कहाँ रह पाते?
--उपेन्द्र यादव
मकान नंबर- 2523/13
गली नंबर-1, राम तीरथ रोड, इत्तेहाद नगर, पुतलीघर, अमृतसर, पंजाब, 143001
11* नोट(अनवर हुसैन)
ऐ दो हज़ार के नोट बता
क्या तेरे मन में खोट बता।
न भरे घाव अभी मिलने के
अब फिर बिरहा की चोट बता।
जब तू जीवन में आया था
इक रंग गुलाबी छाया था।
दो अति स्नेही मित्रों को
पल भर में मार भगाया था।
पहली हिलोर धोती ले गई
दूजी खींचे लंगोट बता।
ऐ दो हज़ार के नोट बता
क्या तेरे मन में खोट बता।
कहते थे बड़े काम का है
पर लगता सिर्फ नाम का है।
जहां सभी नोट मेहनतकश हैं
तेरा स्वभाव आराम का है।
कहीं रह न जाना छिपा कहीं
घायल दिल रहा कचोट बता।
ऐ दो हज़ार के नोट बता
क्या तेरे मन में खोट बता।
तू दुश्मन है हर नारी का
सब कुछ उनका तू लूट गया।
मुश्किल से संभली थी अबला
अब फिर से माथा फूट गया।
सरकार ने छोड़ा साथ तेरा
अब लेगा किसकी ओट बता।
ऐ दो हज़ार के नोट बता
क्या तेरे मन में खोट बता।
-अनवर हुसैन
हिंदी शिक्षक, समिस खरौड़ा
फतेहगढ़ साहिब।
12* ज़िंदादिली....(बलबीर कौर सैनी)
रात का साया घना हैं रोशनी की बात कर!
छेड़ तारों की कहानी चाँदनी की बात कर!
दर्द तेरा है, सुनेगा ओर कोई क्यों भला,
भूल जा ग़म के फ़साने बस ख़ुशी की बात कर!
आख़री दिन हर किसी का तय हुआ संसार में,
छोड़ के डर मौत का तू ज़िन्दगी की बात कर!
जान कर भी क्या करोगे उम्र के दिन या बरस,
मौज से जितना जिये हैं उस घड़ी की बात कर!
मुस्कुराये शूल पर भी शान से वो जिस तरह,
मखमली से फूल की ज़िंदादिली की बात कर!
बलबीर कौर सैनी ,फगवाड़ा
13*हौंसला(सतिंदरजीत कौर)
जीने की है आरज़ू तो कर हौसला चट्टान,
वरना कहाँ टिकते हैं यहां रेत के मकान ।
सच का दामन ही देगा आखिर रुह को सकूं ,
ना मिलेगा चैन जिसकी झूठ की दुकान ।
ना झुक कभी, ना रुक कभी, ना पांव डगमगा तेरे ,
जिंदगी तो लेगी हर कदम पे इम्तहान।
ना किसी का हो सका ना होगा ही कभी,
वक़्त की हकीकतों से तू क्यों है अनजान ।
रात का अंधेरा दिन को क्या डराएगा,
भोर की किरण है दोनों के दरमियान ।
सतिंदरजीत कौर ,अमृतसर ।
14*अब,बहुत याद आते हो तुम (डॉ संजय चौहान )
अब, बहुत याद आते हो तुम।
युवापन की हठी भावना,
लक्ष्य-सिद्धि ही केवल लक्ष्य था।
क्या छुटा है, कौन रुठा है।
नहीं पता,कर्मलीन बस केवल साधना ।
तब बसंत केवल बसंत था,
पतझड़ तो पत्तों का गिरना,
वर्षा-जल की फुहारों से
तपती धरती सिंचित-प्लावित
मुझे लगता समय चक्र-सा ।
संध्या-वेला की शिथिलता में
तन है अब थका-थका सा
मन -सुरंग में गति नहीं है
चिंतन बस केवल शेष है ।
निशा निमंत्रण के सानिध्य में
कुछ अतीत कुछ भविष्य है ,
हे महाकाल , इस विकट बेला में
मान-अपमान के कठिन क्षणों में
तुम ही सहायक मेरे ईश्वर ।
अब, बहुत याद आते हो तुम ।
डॉ संजय चौहान
28, हरपाल ऐवेन्यू, घनूपुर,
छेहरटा, अमृतसर, पंजाब
मो० 9478440472
15*जब से गई हो तुम(डॉ.सोनिया शर्मा )
मेरे घर की रौनक हो तुम
मगर,सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
चहल-पहल रहती थी घर में
जब इधर-उधर फुदकती थी तुम
अब ना कोई चहकन
ना कोई फुदकन
खामोश पड़ा है हर कोना
चारों ओर है गुमसुम
सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
लड़ती थी,झगड़ती थी
जिद पर अडी रहती धी तुम
अब तो आलम ये है कि
आवाज तक भी कहीं से
देती नहीं हो तुम
सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
चाहे काम करती थी तुम कम
पर मेहमानों के आने पर
सब संभाल लेती थी तुम
अब किसे आवाज देकर कहूं
कि जरा मेरी बात सुन
सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
घंटों छत पर टहल,आपस में
बतियाते थे हम
ठहाके लगाकर हंसते थे
और गुनगुनाते थे हम
मेरे कहने पर
पौधों को भी पानी डाल देती थी तुम
मगर अब सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
सब कुछ वही है
कुछ भी बदला नहीं है
बस एक ही कमी है
कि मेरे पास नहीं हो तुम
सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
चल पड़ी हो
जीवन की नई राह पर अब
कभी उदास ना होना
सदा खुश रहना तुम
मुस्कराते गुनगुनाते हुए
आगे कदम बढ़ाना तुम
सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
कौन कहता है कि
मेरे पास नहीं हो तुम
दिल की हर धड़कन में
हर पल रहती हो तुम
करती हूं जब बंद आंखें
तो नजर आती हो सिर्फ तुम
सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
सूना पड़ा है आंगन मेरा
जब से गई हो तुम।
डॉ सोनिया शर्मा
हिन्दी अध्यापिका
अमृतसर। 7973800352
16*सुलगते हर्फ़ (गुरवेल कोहालवी)
मेरी जिंदगी की किताब फुर्सत में पढ़ना,
जाऊँगा कुछ पन्ने मोड़ कर ।
सफर-ए-जिंदगी के तल्ख़ लम्हें, लिखे मैनें;
सुलगते हर्फ़ जोड़ कर।
लिखी हैं वफाएँ मेरी और जफाएँ तेरी,
रक्त दिल का निचोड़ कर।
मुसाफ़िर हूँ एक रोज़ चला जाऊँगा,
लेकिन जाऊँगा न दामन तेरा छोड़ कर।
सौंधी खुश्बू बनके बस जाऊँगा तेरी साँसों में,
भला जीता है कोई साँस छोड़कर।
मैं खाक बन जाऊँगा तेरी डगर की,
कैसे देखोगे खाक को तोड़ कर।
बादल बनके बरसूँगा तेरे आँगन में,
ले जाऊँगा तेरे सब गम रोड़कर।
रंग वसल का बनके रंग दूँगा तेरी चुनरी को,
चढ़ जाना तू डोली मुझे ओढ़कर।
मैं आफताब नहीं जुगनू ही सही,
रोशनाऊँगा तेरा रास्ता दौड़-दौड़ कर।
कहा था न!
तेरे सिवा, नहीं मेरे दिल में कोई और
क्या मिलेगा? तुझे *गुरु* मेरा दिल तोड़ कर।
इतनी ही है दास्ताँ-ए-मुहब्बत ,
मैंनें लिखी है सुलगते हर्फ़ जोड़ कर।
संकलित एवं संपादित
डॉ पूर्णिमा राय, शिक्षिका एवं लेखिका
महासचिव
(गुरुमुखी दे वारिस हिंदी काव्य मंच, पंजाब)
सौजन्य:चेयरमैन गुरवेल कोहालवी
(गुरुमुखी दे वारिस पंजाबी साहित्य वेल्फेयर सोसायटी रजि, पंजाब)
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