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Showing posts from May, 2022

शब्दों के मोती (अन्तर्राष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता) - मिला प्रशंसा- पत्र (डॉ.पूर्णिमा राय)

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शब्दों के मोती (अन्तर्राष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता) मिला प्रशंसा- पत्र (डॉ.पूर्णिमा राय) यह जीवन एक प्रतिस्पर्धा है ,प्रतियोगिता है। प्रतिपल इंसान किसी न किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सदैव आगे बढ़ता रहता है। मंजिल को पाने की ललक उसके कदमों की रफ्तार को सदैव तीव्र करती रहती है ।कभी उबड़-खाबड़ रास्ते आयें, कभी समतल मैदान आयें तो भी इंसान अपने लक्ष्य के लिए निरंतर कार्य करता ही रहता है। लेखन कार्य भी एक तरह से साहित्यिक मंजिल को पाना ही है। साहित्यिक दिशा में खुद को बेहतरीन करने में प्रयासरत रहने वाला साहित्यकार नित्य नई मंजिल को पा लेता है। प्रतियोगिताएं जीवन में हमें यही सिखाती है कि आगे बढ़ो, जिंदगी रुकने का नाम नहीं है ,इसी लक्ष्य से मैं भी निरंतर साहित्य क्षेत्र में होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेती रहती हूं। स्टोरीमिरर साहित्यिक वेबसाइट, वेब मैगजीन पर अपनी रचनाओं को निरंतर प्रकाशित करना, उस में होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लेना मुझे बहुत अच्छा लगता है। चाहे मुझे प्रथम स्थान मिले या ना मिले, प्रशंसा पत्र मिले या ना मिले इसका मुझे कभी भी लोभ नहीं रहा है और ना ही रहेगा। पर जब भी ...

गवाही

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 गवाही  आज 14नवंबर "बाल दिवस" के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस दिन स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू जी का जन्म दिन है।जो बच्चों से बेहद प्यार करते थे।बच्चे प्यार से उनको चाचा नेहरू पुकारते थे।गुलाब के फूल जैसे बच्चों के लिये एक दिन मनाने की पुण्य भावना को चिरस्थाई रखने के लिये ही 14 नवंबर का दिन नियत किया गया था।कहते हैं बच्चे भगवान का रूप हैं।शायद सच भी है।पर समय परिवर्तन के साथ -साथ बच्चों के प्रति समाज के लोगों के बदलते व्यवहार को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।बाल मजदूरी की समस्या दिनोंदिन बढ़ रही है चाहे समाजसेवी संगठन इस दिशा में विशेष सहयोगात्मक रूख अपना रहें हैं फिर भी आये दिन सड़कों पर चार पाँच साल से लेकर 13-14 वर्ष के बच्चे छोटी-छोटी चीजें --मूँगफली,चने,झंडे,गुब्बारे ,दिये ,समाचारपत्र आदि बेचते नज़र आ ही जाते हैं।बीते दिनीं हम लोग कार से जा रहे थे ।रास्ते में अचानक जमीन पर एक नुक्कड़ में छोटी सी तरपाल डालकर एक अस्थाई दुकान बनी हुई थी जिसमें मूँगफली,चने गर्म करके बेचे जा रहे थे।सर्दी आ रही है ,सोचा थोड़ी गर्म मूँगफली खरीद ली जाये।यही सोचकर गाड़ी रोक ल...

स्वार्थ का कीड़ा खेल खेलता है

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स्वार्थ का कीड़ा खेल खेलता है  अंध श्रद्धा को भक्ति एवं धर्म का नाम देना उचित नहीं।धर्म यह भी नहीं कि भेड़चाल की तरह यां पारिवारिक संस्कारों में मिली धार्मिक विरासत के आगे बिना सोचे समझे ,जाने बगैर मस्तक झुकाओ और घुटने टेक दो।ठप्पा लगा..कहाँ है ठप्पा...आमिर खान की फिल्म "ओ माय गॉड" में बेबाकी से धार्मिकता पर किया आक्षेप आज के संदर्भ में कितना उचित था यां अनुचित ...सोचने का प्रश्नहै।पर तब भी विवाद हुआ ..लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँची ...कहकर आक्षेप लगे।सदैव देर बाद ही बात समझ आती है शायद भोले भाले लोगों को,समाज के नेताओं को ,सरकारों को,,धर्म के ठेकेदारों को ..तभी तो 15 साल बाद किसी निर्णय पर पहुँचे।यहाँ मुद्दा किसी धर्म गुरु का,नेता का,प्रशासन का,व्यवस्था का यां प्रबुद्ध वर्ग यां सामान्य जन का ...किसी का भी हो ...शीघ्र स्वीकारने में हिचकिचाहट होती है ..तभी तो आगजनी,हिंसा,पथराव,.मृत्यु का तांडव न जाने क्या क्या ......देखती है आँखें...और दुखी होती है साफ आत्मायें!!  स्वार्थ का कीड़ा खेल खेलता है सब....अगर हम कहें कि सब एक जैसे हैं तो यह धारणा गल्त होगी।साधारण तौर पर किसी एक के कु...

सेल्फी और सेल्फ(डॉ.पूर्णिमा राय)

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सेल्फी और सेल्फ आधुनिक स्मार्टफोन युग में दूसरों के समक्ष अपने सेल्फ के बाह्य रूप को प्रस्तुत करने का प्रस्फुटन सेल्फी है।मैं क्या हूँ और क्या दिखाना चाहता हूँ ?मैं कैसा हूँ और कैसा दिखता हूँ?इसी ऊहापोह में एवं एकान्त जीवन की घुटन में बाहरी अपनेपन और खुशी तथा आनंद के पलों को खोजते-खोजते मानव इतना मशीनी हो गया कि उसे इन्सानों से अधिक मोबाइल एवं इंटरनेट पर उपलब्ध संसाधनों - ------- फेसबुक,वात्सैप,इनस्टाग्राम इत्यादि से अत्यधिक लगाव हो गया।ये लगाव एक सीमा तक जहाँ आनंददायक था,वहीं सीमा के अतिक्रमण होने पर यह मानव की असमय मौत का साधन भी बन गया। हिंदुस्तान की आबादी 133 करोड़ के आस पास आ चुकी है और देश में मोबाइल की संख्या भी इसी के आस-पास है । देश में इस समय लगभग 120 करोड़ मोबाइल लोग का प्रयोग कर रहे हैं।लगभग 9.30 करोड़ सेल्फी हर दिन दुनिया में ली जाती है । भारत में ही नहीं हर देश में इसका प्रचलन खूब हो रहा है आज चहुँ ओर नजर दौड़ायें तो सेल्फी की भरमार ही नजर आ रही है। एक सर्वे केअनुसार पुरुष 20 सेकेंड से ज्यादा समय के लिये भी मोबाईल से दूर नहीं रह सकते। परन्तु महिलाओं की स्थिति इस मामले में...

बारिश (हास्य व्यंग्य)

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बारिश (हास्य व्यंग्य) असमता के पाटों के बीच, पिसता जीवन करे गुहार बारिश की बूँदों से टपके,दर्द टीस और हाहाकार!! न जाने क्यों ?लोग यह नहीं सोचते कि हमारा इस तरह का बर्ताव एक तो हमारे खुद के लिये हानिकारक है और दूसरा अन्य व्यक्तियों को ,भी इससे नुक्सान होगा।सड़कें कच्ची थी !नहीं, नहीं,पक्की थी ।अपने ऊँचें घरों को अन्य लोगों के घरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की लालसा ,चाहना ने पक्की सड़क को मिट्टी से ढककर कच्चा बना दिया था।पानी का पाईप बाहर खुली सड़क पर ओवरफ्लो होता, टैंकी भरने पर पानी कभी किसी राही को नहला देता,तो कभी किसी गुज़रती गाड़ी को नहला देता। कहीं झगड़ा न हो जाये,दो चार बार पुलिस भी आ चुकी थी।अब जिसको मुश्किल लगती ,वह खुद बात करे ,औरों को क्या।सबको अपना गेट साफ चाहिये था।हाँ ,भई  साफ-सफाई घर की तो होनी ही चाहिये ।गली-मुहल्ले का रास्ता कीचड़ सना रहे ,हमें क्या!हम तो पैंट टाँग कर जूते हाथ में पकड़ कर निकल ही जायेंगे ।वैसे बलि का बकरा कौन बने! ना जी,हम तो दूसरों के खाली पड़े प्लाट से ईंटें चोरी कर सकते हैं,मिट्टी उठाकर घर का आँगन ऊँचा कर सकते हैं ,हमसे तो न होगा ,किसी को जाकर कहना कि अपना प...

पावन प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन by Dr Purnima Rai

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  पावन प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन  रक्षा बन्धन आ गया, बहना का ले प्यार। दिवस 'पूर्णिमा' कर सजे,रक्षाबंधन तार।। आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तो को मजबूती प्रदान करने का पर्व रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भारतीय समाज में व्यापकता और गहराई से समाए हुए इस पर के दिन लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली सजाकर अपने भाई को राखी बांधने के लिए जाती है ।अभीष्ट देवता की पूजा करने के बाद रोलिया हल्दी का टीका लगाकर भाई की आरती उतारती है और दाहिनी कलाई पर राखी बांधती हैं ।इसके बदले में भाई बहन की रक्षा का वचन लेता है और उसे उपहार में कोई धनराशि या कोई अमूल्य वस्तु प्रदान करता है। रक्षाबंधन तार, राखियाँ प्यारी चमके । शाश्वत केवल प्यार, बहन के मुख पे दमके। राखी के रंग-बिरंगे धागे बहन-भाई के रिश्ते को दृढ़ता प्रदान करते हैं ।बहन-भाई के प्रेम का सूचक यह त्यौहार देशकाल, भाषा-जाति की सीमाओं से परे गुरु- शिष्य कि रिश्ते को भी राखी के पवित्र धागों में बांधता है। कहते हैं जब कभी शिष्य गुरुकुल से शिक्षा लेकर विदा होता था तो शिष्य अपने गुरु का आशीर्वाद पाने के लिए अपने आचार्य को राख...

बुजुर्ग :समाज का सशक्त आधार

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बुजुर्ग :समाज का सशक्त आधार बुजुर्गों का आदर-सम्मान करना हमारी उच्चकोटि की भारतीय संस्कृति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। बुजुर्ग घर-परिवार,समाज देश व राष्ट्र की नींव का सशक्त आधार हैं जिनके महत्तव को अनदेखा करना अपने आपको भीतर से खोखला करने के समान होगा ।बुजुर्ग शब्द को एक सीमित परिधि जैसे कमजोर शरीर ,बेकार ,व्यर्थ का बोझ, फालतू सिर खाने वाला,निकम्मा ,निठल्ला आदि संबोधनों से संबंधित मानकर ही स्वीकारना ,समाज की संकीर्ण मानसिकता का उद्घाटन है,जोकि उचित नहीं है।। बुजुर्ग शब्द के साथ ही हमारे मानसपटल पर एक ऐसी छवि अंकित होने लगती है जिसने अपने जीवन में उम्र के साथ-साथअनेक अनुभव प्राप्त किये हों। हमारी सोच ,हमारा सकारात्मक रवैया बनाने में बुजुर्गों की भूमिका अक्षुण्ण है। बुजुर्ग समाज के अनमोल धरोहर हैं। वें सामाजिक-धार्मिक राजनैतिक व्यवस्था की नींव के मजबूत आधार हैं। वे एक मार्गदर्शक हैं सलाहकार है शिक्षक हैं जो हमें हमेशा विवेकपूर्ण निर्णय करने में सहायता करते हैं क्योंकि उनके अनुभव जीवन का भोगा हुआ यथार्थ सत्य हैं।जीवन की कठिन परिस्थितियों बुजुर्गों के सही निर्देशानुसार हम सुरक्षित स्थान...

नशा पाप का मूल है,करता पाप विनाश

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नशा पाप का मूल है, करता पाप विनाश  आज सबसे बड़ी सामाजिक समस्या मुँह खोले खडी है _युवाओं का नशे के चंगुल में फंसना। श्री गुरु नानक देव जी ने लिखा है__ "भांग मछली सुरापान,जो जो प्राणी खाए। धर्म कर्म सब किये ते,सभी रसातल जाए।।" नशे के सेवन से इंसान का यह अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है।देश के कर्णधार 9० प्रतिशत युवा आज सबसे ज्यादा नशे के शिकार हैं। देश की उन्नति में अपनी उर्जा लगाने के स्थान पर वह अपनी अमूल्य शारीरिक और मानसिक सामर्थ्य चोरी, लूट-पाट और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में व सामाजिक कुरीतियों में नष्ट कर रहे है। जब से बाजार में गुटका पाउच का प्रचलन हुआ है, तबसे नशे की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। आज बच्चे से लेकर बुजुर्ग भी गुटका पाउच की चपेट में है। घर -गृहस्थी संभालने वाली नारी भी अब इससे दुष्कर्म से अछूती नहीँ रही। यह अत्यंत दुखद है कि नशा करने वाला हर व्यक्ति जानता है कि नशे की आदत उसके लिए नुकासानदायक है, बावजूद इसके इस प्रवृत्ति में लगातार बढ़ोतरी देखी जा सकती है।       यह ठीक है कि जहाँ तकनीकी विकास हुआ है, वहीं नशे के सेवन मे...

खालसाई ओज का प्रतीक होला महल्ला:एक दृष्टिपात

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 खालसाई ओज का प्रतीक होला महल्ला:एक दृष्टिपात   आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहाँ एक ओर त्योहारों को अनदेखा और नजर अंदाज किया जा रहा है ।वहीं दूसरी ओर लोगों में आपसी सदभाव और मिलनसारिता के भाव धूमिल होने लग गये है।जब भी होली की बात आती है तो एक अजीब सी सिहरन मन, देह ,आत्मा को कंपित कर जाती है ।एक अनोखा सा एहसास मन को उद्वेलित करने लगता है।अकेलेपन की त्रासदी का शिकार जनमानस आनंद के पलों की अनुभूति हेतु व्याकुल होता है।उसके लिए एकमात्र त्योहार ही आनंद के स्रोत हैं ,अब ऐसा नहीं रहा। सामयिक जीवन में लोगों के पास इंटरनेट की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं,लोग आज घरों से तो क्या ..अपने कमरे से बाहर निकलकर अन्य स्थान पर जाने के लिये भी तैयार नहीं,तो फिर हम कैसे होली जैसे पावन ,मादकता पूर्ण ,ऋतुराज के संदेशवाहक फाल्गुन का आनंद उठा सकते हैं  फगुआ,धुलेंडी,फाल्गुनी आदि नामों से सुसज्जित  होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एवं भारतीय संस्कृति का एक मुख्य एवं सुप्रसिद्ध भारतीय त्योहार है।बसंत का संदेशवाहक होली पर्व संगीत और रंग का परिचायक तो है ही,साथ ही प्...

नारी और वक्त by Dr.Purnima Rai

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नारी और वक्त  नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नगपग तल में पीयूष स्रोत सी बहा करो ,जीवन के समतल आँगन में  (जयशंकर प्रसाद,कामायनी) आज औरत अबला नही सबला है,वह पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर पारिवारिक सामाजिक,शैक्षणिक एवं राष्ट्रीय,धार्मिक,साहित्यिक और साँस्कृतिक सभी प्रकार के कर्तव्यों को बाखूबी निभाने लगी है।वह हरेक कार्य जो पुरुष कर सकता है ,वह भी करती है।एकाध अपवाद को छोड़कर पुरुष भी नारी के साथ घरेलू कार्यों में ,अपनी जिम्मेदारी निभाने लगे हैं ,ऐसा आमतौर पर समाज में विचरते हुये हम अनुभव करते हैं ,अरे सुन,मेरा पति तो सुबह- सुबह चाय भी बनाकर पिलाता है,कपड़े तो वो ही छुट्टी के दिन धोते है , जानती हो --अगर मेरे पति सब्जी न लायें तो मैं कुछ नहीं बनाती--बस जो दाल- वाल घर में हो ,बनाती हूँ ,और तो और मैं तो बस हुक्म चलाती हूँ ---वाहहह, बड़े मज़े हैं तुम सब केआदि बातें जब औरतें खिलखिलाकर करती हैं तो ---तरस भी आता है और जलन भी ?? तरस इसलिये कि क्या ऐसी नारियों को महान कहा जाये ,जो छोटी-छोटी बातों से ,सहेलियों में ढींगें मारकर अपना नारीत्व सिद्ध करती हैं यां उनमें इतनी काबलियत नह...

अनुशासन ,अनुशासनहीनता और विद्यार्थी

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अनुशासन ,अनुशासनहीनता और विद्यार्थी by Dr.Purnima Rai "अनुशासन की नींव पर,टिका हुआ संसार। आस और विश्वास से ,मिले प्रगति आधार।।" ( दोहा, डॉ.पूर्णिमा राय) स्वयं पर नियंत्रण करना,अपने आपको नियम में रखकर जीवन बिताना एवं समाज द्वारा नियत मूल्यों का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है।कहते हैं जब प्रकृति नियम और अनुशासन में रहे तो विकास और अनुशासन टूटे तो विनाश!सूर्य ,पानी ,हवा इत्यादि अगर समय चक्र के साथ नियंत्रण में न रहें तो मानव के लिये जीवन जीना दूभर हो जाता है।व्यक्ति अपनी सीमायें भूल जाये ,मनमर्जी करे तो परिवार बिखर जाते,प्रधानमंत्री जनता के साथ तालमेल न रख पाये तो देश का भविष्य बिगड़ते देर न लगती।यह सब बातें अनुशासनहीनता से बचने के लिये ही कही जा रही हैं।साधारण शब्दों में अनुशासन में न रहना ही अनुशासनहीनता है। नित नूतन हो रहे परिवर्तन के तहत आज जहाँ एक ओर घर परिवार,समाज ,देश,राष्ट्र और विश्व बदला है,वहाँ व्यक्ति के स्वभाव में बदलाव न आये ,यह कैसे असंभव था। एक तरफ सफलता के शिखर को छात्र छू रहें हैं तो दूसरी ओर विनाश के गर्त में गिरते विद्यार्थी समाज एवं परिवार के लिये चिन्ता का विष...

माँ बिन सूना जीवन आँगन (सांझा संग्रह)

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माँ बिन सूना जीवन आँगन (सांझा संग्रह) इस अंक में------ (1) डॉ.पूर्णिमा राय---माँ आँचल की छाँव                                (छंद बद्ध रचनाएं) (2) प्रमोद सनाढ्य"प्रमोद"---क्यों छोड़ गई तू माँ, (गीतिका) (3)नीरजा कमलिनी-----माँ ही है भगवान,दिव्यशक्ति                                     (कविताएं) (4)कैलाश सोनी सार्थक--माँँ ही सच्चा सार (गीत) (5)आशीष पाण्डेय --मेरा परिचय मेरी माँ(गीत) (6)डॉ.अरुण श्रीवास्तव--ममता की मूरत(कविता) (7)डॉ.सुमन सचदेवा---माँ तो बस माँ होती है(कविता) (8)शोभित तिवारी---प्रेम की भाषा सिखाती माँ(गीत) (9)मेहरु पंडित प्यासा---जननी कागुणगान                                  (महाशृंगार छंद) (10)राजकुमार सोनी---झोली भर दे माँ (गीत) (11)अनीता मिश्रा सिद्दी---छुअन माँ की(कविता) (1...